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________________ 52 ] TERA RMA स्मृतियों के वातायन से परिवार के परिजनों की शुभकामनाएँ - डॉ. शेखरचंद जैन एक बहुआयामी व्यक्तित्व डॉ. शेखरचंद जी का जीवन ‘फर्श से उठकर अर्स तक पहुंचने' के सतत संघर्ष की कहानी है। वर्ष १९५७ में मेरी उनसे रिश्तेदारी हुयी। वे मेरे साले बने तब से आज तक मैं उनके संघर्षपूर्ण जीवन एवं उपलब्धियों का दृष्टा रहा हूँ। वर्ष १९५७ में वे मात्र इंटरमीडियेट पास थे तथा प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे उनके परिवार में उनकी पत्नी के साथ-साथ उनके माता पिता,दो छोटे भाई एवं एक छोटी बहिनथी। पिता की आर्थिक स्थिति साधारण थी और श्री शेखरचंद जी के ऊपर पूरे परिवार का भविष्य निर्मित करने का दायित्व था। वे तो मानो कह रहे थे ___ मैं जबसे चला हूँ, मेरी मंजिल पर नजर है आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा॥ इन विपरीत परिस्थितियों में श्री शेखरचंदजी सतत संघर्ष करते हुए डॉ. शेखरचंद । जैन बने, जो उनकी अन्तहीन मेहनत साहित्य एवं दर्शन के प्रति गहरी साधना एवं आंखों से झाँकती गहन जिज्ञासा का परिणाम है, जो सचमुच आश्चर्यजनक है। ___ उन्होंने अपने पारिवारिक दायित्वों को अत्यन्त सम्मानजनक ढंग से निभाया और अपने दोनों पुत्रों को एवं एक भाई को डाक्टर बनाया तथा अपने छोटे भाई को स्थापित किया और सबकी शादियाँ की। उनके पुत्र एवं भाई आज अहमदाबाद में अपने-अपने परिवार के साथ सम्मानित एवं प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जो डॉ. शेखरचंद जैन का सपना था। ___ उनका जीवन संघर्ष की यात्रा का लेखा-जोखा है। विभिन्न जिम्मेदारी के पदों पर रहे। अहर्निश चरैवैति के सिद्धांत को ही जीवन बना लिया। इन धूप-छाँव ने उन्हें कभीकभी कटु भी बना दिया।सत्य के परम समर्थन में अन्याय के सामने घुटने नहीं टेके। जो उन्हें समझ नहीं पाते उन्हें के कुछ रूक्ष भी मानने लगे पर यदि शेखरजी से ही पूछे तो वे कहेंगे पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला मैं मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा। अहमदाबाद में श्री आशापुरा मां जैन हॉस्पिटल की स्थापना की है जिसमें अनेक
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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