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________________ | 36 ] स्मृतियों के वातायन से समिति को यह कार्य सम्पादित करने के लिए साधुवाद। भाईश्री शेखरचन्द्रजी को शुभकामनाएं अर्पित करते हुए आशा करता हूँ कि आपकी सेवाओं का लाभ हमें लम्बे समय तक प्राप्त होता रहेगा और आप द्विगुणित उत्साह । से समाज को धार्मिक प्रेरणा प्रदान करते रहेंगे। डॉ. नारायणलाल कछारा (उदयपुर) a संयोजन कला के सिद्धहस्त प्रखत मनीषी हमें यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि डॉ. शेखरचन्द्र जैन की सामाजिक सेवाओं के उपलक्ष्य में अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है। ___ मेरा उनसे व्यक्तिगत परिचय लगभग 3 दशकों से रहा है। वे जैन सांस्कृतिक जागरण के प्रमुख अग्रदूत हैं। एकान्तवाद की आंधी के ग्रस्त लोगों को अनेकान्त पथ पर अग्रसर करने में उनकी महती भूमिका है। उनकी पत्रकारिता में समन्वय शीलता विद्यमान है। वे सांस्कृतिक एकता के प्रबल पक्षधर हैं। अनेक भाषाओं के मर्मज्ञ मनीषी हैं। अंतर्राष्ट्रीय जगत में जैन-धर्म दर्शन के व्यापक स्वरूप के प्रचार-प्रसार में उनकी उल्लेखनीय भूमिका है। परम पूज्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर महाराज के 2004 में सूरत चातुर्मास प्रवास के समय श्रावकाचार संग्रह अनुशीलन राष्ट्रीय संगोष्ठी में उनके साथ संयोजन करने का सुखद अवसर रहा। उस समय उनकी संयोजन कला से मैं अत्यन्त प्रभावित हुआ। वाणी और लेखनी का विलक्षण संगम आपके व्यक्तित्व की विरल विशेषता है। सामाजिक सेवा की प्रबल भावना से ओतप्रेत होकर निःस्वार्थ भावना से जन-जन को औषधि दान देकर योगक्षेम की अभिवृद्धि में निरन्तर संलग्न है। वस्तुतः डॉ. शेखरचन्द्र जैन का व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहु आयामी है। मैं इस सुखद उपक्रम के मंगलिक प्रसंग पर उनके यशस्वी एवं दीर्घ जीवन की मंगलकामना करता हूँ। डॉ. अशोककुमार जैन (लाडनूं) - संघर्षों से शिखर तक पहुँचने वाला व्यक्तित्व जिनवाणी के आराधक मनीषी डॉ. शेखरचन्द जैनजी का जन्म साधारण परिवार में हुआ। आपने विपरीत परिस्थितियों में भी अहमदाबाद में रहकर उच्च शिक्षा तक अध्ययन किया। आपने मुख्यतः अध्ययन कार्य को ही अपना कर हजारों शिष्यों को पढ़ाया तथा विभागाध्यक्ष पद पर रहते हुए अनेक शोधार्थियों तथा साधु-साध्वियों को शोध उपाधि प्राप्त कराई। ___ आप हिन्दी, अंग्रेजी तथा गुजराती आदि भाषाओं पर पूरा अधिकार रखते हैं। शताधिक शोधपत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। अनेकों पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। आपके कुशल संपादन में “तीर्थंकर वाणी" (तीनों । भाषाओं में) मासिक पत्रिका का प्रकाशन निरन्तर पन्द्रह वर्षों से करते हुए उसमें पाठशाला के माध्यम से, सरल-सुबोध शैली से देश-विदेश के बच्चों-बच्चों तक कठिन से कठिन बातों (सिद्धान्तों) को सहज ही ज्ञान कराये रहते हैं। सहजानन्दवर्णी की पाँच पुस्तकों का हिन्दी से गुजराती में अनुवाद भी आपने किया है। आपने कई ज्वलंत मुद्दों पर निर्भीकता से कलम चलाई है। __ आपने विदेश भूमि पर अनेकों बार यात्राएं करते हुए प्रवचन वा ध्यान के माध्यम से प्रभावी ढंग से जिनवाणी का प्रचार-प्रसार किया है | कर रहे हैं। आपका (समय-समय) अनेक विशिष्ट पुरस्कारों से बहुमान किया जा चुका है। आप विद्वत् महासंघ के अध्यक्ष रह चुके है। वर्तमान में भारत जैन महामण्डल गुजरात के उपाध्यक्ष पद ।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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