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________________ 457 अभाषात्मक शब्द पुनः प्रायोगिक वैनसिक के भेद से दो प्रकार का माना गया है । अभाषात्मक प्रायोगिक प्रकार का शब्द भी तत, वितत, घन और सौषिर के भेद से फिर चार प्रकार का होता है। 'धवला' में शब्द के छः भेद स्वीकारे गये हैं- तत, वितत, घन, सौबिर, घोष और भाषा । 'सर्वार्थसिद्धि' के अनुसार मेघादि के निमित्त से जो शब्द उत्पन्न होते हैं, वे वैससिक है । चमड़े से मढ़े हुए । पुष्कर, भेरी और दर्द से जो शब्द उत्पन्न होता है वह तत है। तांत वाले वीणा और सुघोष आदि से जो शब्द उत्पन्न होता है, वह वितत है। ताल, घण्टा और लालन आदि के ताड़ से जो शब्द उत्पन्न होता है, वह घन है तथा बाँसुरी और शंख आदि फूँकने से जो शब्द उत्पन्न होता है, वह सौषिर है। 'धवला' में वर्णित शब्द-भेदों की व्याख्या में 'सर्वार्थसिद्धि' की अपेक्षा कुछ भिन्नता मिलती है, जैसे- वीणा के शब्द को सर्वार्थसिद्धि में वितत कहा गया है, जबकि धवला और पंचास्तिकाय में यह तत माना गया है । भेरी 1 का शब्द सर्वार्थसिद्धि में तत है, जबकि धवला में यह वितत माना गया है। सर्वार्थसिद्धिकार ने भाषात्मक शब्द के भी दो भेद किए हैं- 1. साक्षर या अक्षरात्मक, 2. अनक्षरात्मक । 'सर्वार्थसिद्धि' के अनुसार जिससे उनके सातिशय ज्ञान का पता चलता है, ऐसे द्विइन्द्रिक आदि जीवों के शब्द अनक्षरात्मक हैं। 'धवला' की अनक्षरात्मक शब्द की परिभाषा में कुछ अन्तर है, इसके अनुसार- द्वीन्द्रिय से ! लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के मुख से उत्पन्न हुई भाषा तथा बालक और मूक संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों की भाषा भी अनक्षरात्मक भाषा है। 'पंचास्तिकाय' में दिव्यध्वनिरूप शब्दों को भी अनक्षरात्मक माना गया है। अक्षरात्मक शब्द को परिभाषित करते हुए सर्वार्थसिद्धिकार कहते हैं कि जिसमें शास्त्र रचे जाते हैं, जिसमें | आर्यों और म्लेच्छों का व्यवहार चलता है, ऐसे संस्कृत शब्द और इसके विपरीत शब्द, ये सब आक्षर शब्द हैं। 'धवलाकार' ने उपधान से रहित इन्द्रियों वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों की भाषा को अक्षरात्मक कहा है। ‘द्रव्यसंग्रह' की टीका में अक्षरात्मक शब्द की और व्याख्या करते हुए कहा गया है कि अक्षरात्मक संस्कृत, प्राकृत और उनके अपभ्रंश रूप पैशाची आदि भाषाओं के भेद से आर्य व म्लेच्छ के व्यवहार के कारण अनेक प्रकार की है। अक्षरात्मक शब्द की उपर्युक्त तीनों परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि वह ध्वनि समूह, जिसमें अक्षरीय 1 भेद किया जा सके और जो सम्प्रेषण रूप व्यवहार में हेतु है, अक्षरात्मक शब्द है। भाषा - व्यवहार की दृष्टि से अक्षरात्मक शब्द के भी 'भगवती - आराधना' में नौ भेद किये गए हैं- ! आमंत्रणी, आज्ञापनी, याचनी, प्रश्नभाषा, प्रज्ञापनी, प्रत्याख्यानी, इच्छानुलोमा, संशयवचन, अनक्षरवचन । अक्षरात्मक भाषात्मक शब्द अनअक्षरात्मक तत प्रायोगिक अभाषात्मक वैनसिक वितत घन सौषिर
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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