SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 469
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1424 स्मृतियों के वातायन से । । दी जाती थी। एक बार किसी वैद्य को जुआ खेलने की आदत पड़ गई थी। परिणाम स्वरूप उसका वैद्यक शास्त्र (वैद्यकीय ज्ञान) और शस्त्र कोश दोनों नष्ट हो गए। इसलिए वह चिकित्सा करने में असमर्थ हो गया। उसका वैद्य शास्त्र किसी ने चुरा लिया और शस्त्रकोश के शस्त्रों पर जंग (जर) लग गई थी। इसीलिए राजा की आज्ञा से उसकी आजीविका बन्द कर दी गई थी। (व्यवहार भाष्य 5/2) __एक अन्य ग्रंथ में प्राप्त उल्लेखानुसार किसी राजा के वैद्य की मृत्यु हो गई। राजा की आज्ञा से उसके पुत्र को अध्ययन के लिए बाहर भेज दिया गया। जिस वैद्य के पास उसे भेजा गया था वह क्रिया एवं व्यवहार कुशल वैद्य था। एक बार एक बकरी जिसके गले में ककड़ी फंस गई थी उस वैद्य के पास लाई गई। वैद्य ने बकरी लाने वाले से पूछा यह कहां चर रही थी? उत्तर मिला बाड़े में। वैद्य को समझने में देर नहीं लगी कि बकरी के गले में ककडी अटक (फस) गई है। उसने बकरी के गले में कपड़ा बांधकर इस प्रकार मरोड़ा कि ककडी टूट कर पेट में चली गई और बकरी का कष्ट दूर हो गया। कुछ समय बाद वैद्य का पुत्र भी अपना अध्ययन पूर्ण कर राज दरबार में लौट आया। राजा ने उसे मेधावी समझ कर उसे सम्मान पूर्वक अपने राज दरबार में नियुक्त कर लिया। एकबार रानी को 'गलगण्ड' नामक रोग उत्पन्न हो गया। राजा ने वैद्यपुत्र से उसकी चिकित्सा करने का निर्देश दिया। वैद्यपुत्र को अपने अध्ययन काल की बकरी वाली घटना का स्मरण हो गया। वैद्य पुत्र ने बकरी वाली घटना के अनुसार ही रानी के गले में वस्त्र लपेट कर उसे जोर से मरोड़ा जिसे रानी सहन नहीं कर पाई और वह तत्काल मृत्यु को प्राप्त हुई। इस घटना से राजा अत्यन्त क्रोधित हुआ और उसने वैद्य पुत्र को दण्डित किया। (बृहत कल्प भाष्य पीठिका 376) __ एक राजा अक्षि रोग से पीडित हुआ था। वैद्यने देखकर आंख आजने के लिए गोलियां दी। आंख में गोली आंजने से तीव्र वेदना होती थी। किन्तु वैद्य ने पहले ही सजा से वचन ले लिया था कि आंख में वेदना होने पर वह उसे दण्ड नहीं देगा। (बृहत कल्प भाष्य पीठिका 1/1277) ___ उस समय सामान्यतः विद्या से, मंत्रों से, शल्य कर्म और वनौषधियों-वनस्पतियों (जड़ी-बूटियों) से चिकित्सा की जाती थी। इनके ज्ञाता और आचार्य यत्र तत्र मिल जाते थे। निम्न उल्लेख से ज्ञात होता है कि इन विषयों के तजज्ञ हुआ करते थे और आवश्यकतानुसार उन्हें बुलाया जाता था__ अनाथी मुनिने मगध सम्राट राजा श्रेणिक से कहा- जब मैं अक्षि वेदना से अत्यन्त पीडित था तब मेरी चिकित्सा के लिए मेरे पिता ने वैद्य विद्या और मंत्रों से चिकित्सा करने वाले आचार्य, शल्य चिकित्सा और औषधियों के विशारद आचार्यों को बुलाया था। (उत्तराध्ययन, 20/22) तत्कालीन चिकित्सा व्यवस्था के अन्तर्गत चिकित्सा की अनेक विधियां पद्धतियाँ उस समय प्रचलित थीं। उनमें आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति सर्वमान्य थी तथा उसकी विशिष्ट चिकित्सा विधि पंचकर्म और तदन्तर्गत वमन- । विरेचन आदि का अत्यधिक प्रचलन था। (उत्तराध्ययन 15/9) अनेक रोगों की चिकित्सा के लिए रसायनों का भी सेवन कराया जाता था। (बृहत वृत्ति पत्र।) अष्टांग विभाग प्राणावाय अथवा आयुर्वेदीय चिकित्सा विज्ञान के मुख्यतः दो प्रयोजन प्रतिपादित किए गए हैं- 'स्वस्थस्य । स्वास्थ्य रक्षण मातुरस्यव चिकारप्रशमनम' अर्थात स्वस्थ पुरूष के स्वास्थ्य की रक्षा करना और आतुर (रोगी) के . विकार (रोग) का उपशमन करना। प्रथम प्रयोजन अर्थात स्वस्थ मनुष्य के स्वास्थ्य के अनुरक्षण के लिए आहार विहार का सेवन इत्यादि अनेक उपाय व्यवहारज स्वास्थ्य के अन्तर्गत प्रतिपादित किए गए हैं तथा अविवेक पूर्ण ।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy