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________________ निर्मण-निलाभ पत्रकार TAMANE 417] लालच त्यागकर डंके की चोट सत्य कहने की हिम्मत जुटानी चाहिए और शिथिलाचारी साधु और श्रावक को टोकना-रोकना चाहिए, फिर चाहे उसको लोगों द्वारा दण्ड या बहिष्कार क्यों न सहना पड़े। आखिर विजय सत्य की होगी।" ____ "इसी सन्दर्भ में मैं उन संस्थाओं और उनके कर्णधारों को भी जिम्मेदार मानता हूँ कि जो सच्चे देव-शास्त्र गुरु के रक्षण के नाम पर आँखे मूंदकर सबकुछ चला रहे हैं।" (तीर्थंकरवाणी/मार्च२००५/सम्पादकीय/पृ.४)। ___ डॉ. शेखरचन्द्रजी ने अपने सम्पादकीयों में आजकल बहुशः आयोजित होनेवाली विद्वत्संगोष्ठियों और विद्वानों के अभिनन्दन ग्रन्थ-भेंट-समारोहों के यथार्थ को भी प्रकाशित किया है। इस प्रकार समाज के जिसजिस वर्ग में, जिस-जिस प्रवृत्ति में विकृतियाँ दृष्टिगोचर होती हैं, उन्हें डॉ. शेखरचन्द्रजी तत्काल 'तीर्थंकर वाणी' में सम्पादकीय लिखकर उजागर करते हैं और इस प्रकार एक सच्चे पत्रकार का धर्म निभाते हैं। विकृतियों को उजागर करने से समाज को उनका बोध होता है, उन्हें वह धर्म और संस्कृतिके लिए घातक समझता है, फलस्वरूप उनके उन्मूलन के लिए वह कटिबद्ध होता है। समाज के प्रबुद्ध लोग विकृतियों को पनपने न देने के लिए पतिताचारी साधुओं, पण्डितों और श्रेष्ठियों को मान्यता देना बन्द कर देते हैं, विकृतिग्रस्त व्यक्ति और वर्ग भी उनके उजागर होने से लज्जित होते हैं और अपने अपवाद, उपेक्षा और अनादर के भय से विकृतियों के परित्याग के लिए प्रेरित होते हैं। इस तरह सच्चा पत्रकार धर्म और संस्कृति की रक्षा का महान् धर्म निभाता है। डॉ. शेखरचन्द्रजी यह प्राणसंकट से परिपूर्ण धर्म निर्भीक और निर्लोभ होकर निभा रहे हैं, अतः शतशः अभिनन्दननीय हैं। वे शतायु हों, यह मेरी कामना है।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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