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________________ SHODHRI 414 0 निर्भय-निर्लोभ पत्रकार प्रो. रतनचन्द्र जैन माननीय डॉ. शेखरचन्द्र जी जैन विविध गुणों के स्वामी हैं। वे एक अच्छे जैन विद्वान, दक्ष शिक्षक, कुशल वक्ता, लोकप्रिय प्रवचनकार, समाज के निपुण नेता एवं निर्भयनिर्लोभ पत्रकार हैं। आज के युग में एक जैन विद्वान् का निर्भय-निर्लोभ पत्रकार होना सर्वाधिक दुर्लभ गुण है। आज जहाँ जैन विद्वानों की बहुसंख्या भेंट-पुरस्कार की लालसा से अन्यायपूर्वक धनोपार्जन करनेवाले श्रीमानों एवं अट्ठाईस मूलगुणों का तिरस्कार करनेवाले ख्याति-पूजालोभी, पतिताचारी मुनियों की चाटुकारिता में संलग्न है और भेंट-पुरस्कार से वंचित हो जाने अथवा आतंककारी, अपापभीरू, मूढभक्तों के द्वारा पिटवाये जाने के डर से उनके धर्म विरूद्ध आचरण पर एक शब्द भी बोलने से घबराती है, वहाँ डॉ. शेखरचन्द्र जैन अपनी मासिक पत्रिका 'तीर्थंकर वाणी' के सम्पादकीयों में उन मुनिवेशधारी । अमुनियों में व्याप्त पतिताचार का निर्लोभ और निर्भीक होकर उद्घाटन करते हैं, जो । अपगूहन और स्थितीकरण के अयोग्य हो चुके हैं और जिनका एकमात्र इलाज आचार्य । कुन्दकुन्द ने “असंजदं ण वन्दे वत्थविहीणो वि सो ण वंदिज्ज" (दर्शनप्राभृत/२६) इस गाथा में बतलाया है। ___ उपगूहन और स्थितीकरण के अयोग्य मुनिवेशधारी अमुनियों की असलियत का । उद्घाटन अज्ञानी श्रावकों को परमार्थ और अपरमार्थ मुनि की पहचान कराने और उनको उपलनाव (पत्थर की नाव) में सवार होने से बचाने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। मुनिवेशधारी अमुनियों की असलियत का उद्घाटन मुनिनिन्दा नहीं है, क्योंकि वे मुनि होते ही नहीं हैं, वे मुनि-जैसे दिखनेवाले अमुनि हैं, श्रमणामास हैं। मिथ्या-मुनियों के मिथ्यामुनित्व की पहचान कराने के लिए उनके मुनिधर्म विरुद्ध आचरण के वर्णन को मुनिनिन्दा कहना आगम सम्मत नहीं है, वह तो सदुपदेश और हितोपदेश है, अतः आगमानुकूल है। आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ ऐसे वर्णनों से भरे पड़े हैं। ऐसा न करना कुगुरू या अगुरु की उपासना का अनुमोदन है, जो असदुपदेश एवं अहितोपदेश की । परिभाषा में आता है। मुनि में जो दोष हैं ही नहीं, उन्हें मुनि में बतलाने को आगम में अवर्णवाद या निन्दा कहा गया है, किन्तु जो मुनि ही नहीं हैं, अपितु मुनिवेशधारी ठग हैं उनके मुनि धर्मविरूद्ध
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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