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________________ विचारकामजीकाकायदाटकोण 395 पदार्थों की अल्पतम उपलब्ध मात्रा पर जलीय सूक्ष्म जीव अपनी वृद्धि कर सकते हैं (सूक्ष्म जीवों की वृद्धि से तात्पर्य उनकी संख्या में वृद्धि से हैं)। ये सूक्षम जीव (जिन्हे जीवाणु Bacteria कहते है) करीब 20 मिनट से लेकर 1 घण्टे कीअवधि में 1 प्रजनन कर एक से दो हो जाते हैं अर्थात् इनकी प्रजनन क्षमता बहुत तीव्र तथा अधिक होती है। इसी कारण से जल का अधिक समय तक संग्रहण नहीं करते हैं। सभी प्रकार के जल में सूक्ष्म जीव उपस्थित रहते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य बीमारियां फैलाने वाले सूक्ष्म जीव जैसे अमीबा इत्यादि (प्रोटोजोआ Protozoa समूह के बीच), डायटम्स, शैवाल आदि (एल्गी Algae समूह के जीव) जल की रासायनिकता के आधार पर पाये जाते हैं। पानी को फास (पास्तरीकरण) करने से पानी में उपस्थित सभी हानिकारक सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं तथा पानी में घुलित गैंसे बाष्प के साथ पानी से बाहर निकल जाती हैं, कार्बनिक एवं अकार्बनिक घुलित पदार्थ अवक्षेपित हो जाते हैं। और उपयोग के लिये इसे जब ठण्डा करते हैं तब ये अवक्षेपित पदार्थ तलछट के रूप में पास्तेरीकृत पानी में दिखते हैं। पास्तरीकृत जल स्वच्छ जल बन जाता है जिसमें सूक्ष्मजीवों की संख्या न के बराबर रहती है अतः इनकी वृद्धि की संभावना समाप्त हो जाती है। ऐसा जल स्वास्थ की दृष्टि से सर्वोपरि है। परंतु, प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त जल में पहले से ही उपस्थित जीवों की हिंसा तो जल के पास्तेरीकरण (फासू) करने में होगी ही। पास्तेरीकरण न करने पर इनकी संख्या निरंतर बढ़ती रहेगी और निस्तार के लिये उपयोग में लाए जाने पर अथवा पीने पर जीव हिंसा कई गुना अधिक होगी। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से तथा अत्याधिक जीव हिंसा से बचने की दृष्टि से फासू पानी का प्रयोग करना उचित है। (4) खाय पदार्थो की मर्यादा किसी भी वस्तु की मर्यादा से तात्पर्य उसके वास्तविक भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन । प्रारंभ होने के समय से है। चूँकि सूक्ष्म जीव वायु, जल एवं धूल, मिट्टी सभी में उपस्थित हैं अतः ये सूक्ष्मजीव संग्रहित खाद्य पदार्थों, जल आदि में पुनः पहुंचते रहते हैं और वृद्धि करने लगते हैं। जैनाचार तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूक्ष्म जीवों की हिंसा की अधिकता से बचने के लिये वस्तुओं की मर्यादा का उल्लेख किया गया है। वस्तुओं (चीजों) की मर्यादा के अनुसार उपयोग करना न केवल हमें अतिजीवी हिंसा से बचाता है बल्कि सूक्ष्म जीवों द्वारा नावित हानिकारक पदार्थों से भी बचाता है। खाद्य सूक्ष्मजीव विज्ञान में भी खाद्य सामग्री को उनकी रासायनिकी तथा भौतिकी के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटा गया है। तथा इसी आधार पर उनकी मर्यादा (Self life) निश्चित की जाती है।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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