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________________ बुन्देलखण्ड का जैन कला-वैभव 355 दैनिक जीवन में अन्यत्र दुर्लभ है। तीर्थंकर मूर्तियों पर प्रदर्शित ये अभिप्राय प्रतिमा की स्वस्ति भावना का प्रभामण्डल बन जाते हैं। उनकी झलक उस ईश्वर के सृष्टिगत ऐश्वर्य को भलीभाँति सूचित करती है। मूर्ति के आनन पर झलकता आनन्द स्वयं उसके अपने आंतरिक ऐश्वर्य का परिचायक बन जाता है। बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिल प्रान्तों की तरह बुन्देलखण्ड की पावन धरती सैकड़ों हजारों वर्ष प्राचीन अनगिनत मन्दिरों से अलंकृत हैं, जिनमें हजारों एक से एक बढ़कर सुन्दर मूर्तियाँ विराजमान हैं। इस धरती का कण-कण तीरथ है। आइये उनका कुछ संकीर्तन करें। बुन्देलखण्ड के जैन तीर्थ बुन्देलखण्ड अपनी विविध विशेषताओं के कारण सदा विख्यात रहा है। चम्बल और बेतवा की निर्मल धाराओं से घिरा हुआ यह भूमि - -भाग इतिहास में बारम्बार चर्चित है। हीरों की खान ने जिस प्रकार इस भूमि को जग जाहिर किया है, उसी प्रकार अनेक पवित्र तीर्थों और मन्दिरों ने भी बुन्देलखण्ड का नाम भारत के मान चित्र पर रेखांकित किया है। बुन्देलखण्ड के स्थापत्य और मूर्ति कला की कीर्ति विदेशों तक चहुं दिश फैल गई है। वास्तव इन तीर्थों ने ही हमारी धार्मिक परम्पराओं शताब्दियों से हमारे लिये सुरक्षित रखा, हमारी निष्ठा और भक्ति को साकार सम्बल दिया, हमारी उस बहुमूल्य धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का महत्त्वपूर्ण काम किया है। राष्ट्रीय गौरव की उस धरोहर में से आज हम यहां बुन्देलखण्ड के कुछ जैन तीर्थों की चर्चा करेंगे। हम अपनी आत्मा को परमात्मा बनाने का प्रयास जब प्रारंभ करते हैं तब कोई एक पूर्ण परमात्मा ही हमारे चिन्तन का आधार बन सकता है। वही पूर्णता अपने भीतर जगाने का लक्ष्य बनाकर, हमें अपनी साधना प्रारंभ करना पड़ती है। हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने उस सगुण आधार को 'प्रभु - मूरत' के रूप में ग्रहण किया है। देवालय में जाकर जब हम उसमें विराजमान देव की पूजा - वन्दना करते हैं तब हम यही संकल्प तो करते हैं कि हमारा यह तन ऐसा ही पावन मंदिर बने, और उसके भीतर निवास करते हुए हम स्वयं परमात्मा की तरह निर्लेप और निर्विकार बनकर अपने ईशत्व को पा सकें। जिस धरती पर कभी किसी तपस्वी ने अपनी साधना को सफल किया हो वही धरती तीर्थ कहलाती है। हम उसी धरती पर मंदिर और देवालय बनाते हैं। प्रकारान्तर से यही सारे तीर्थो का इतिहास है। जब से हमारे देश में तीर्थों, मंदिरों और मूर्तियों का इतिहास मिलता है, तभी से जैन तीर्थ, और जैन मंदिर भी सर्वत्र उपलब्ध होते हैं। बुन्देलखण्ड का भूमि भाग जैन तीर्थों की दृष्टि से बहुत समृद्ध है। भारतीय मूर्तिकला की कीर्ति को विश्व के कोने-कोने में पहुँचाने वाला खजुराहो हमारे लिये गौरव का केन्द्र है। देवगढ़ डेढ़ हजार साल पहिले से देवताओं का गढ़ रहा है। इसी प्रकार सोनागिर, चंदेरी, थूबोन, सैरोन, नवागढ़, अहार, पपौरा, द्रोणगिरि, नैनागर, कुण्डलपुर, बहोरी बंद, मढियाजी, सीरापहाड़, अजयगढ़ आदि जाने किते जैन तीर्थ बुन्देलखण्ड की भूमि को पावनता प्रदान कर रहे हैं। कला - तीर्थ खजुराहो यह खजुराहो है। छतरपुर रीवा रोड पर बमीठा से 12 किलोमीटर चलकर हम यहां पहुंचते हैं। खजुराहो आज आधुनिकतम सुविधा सम्पन्न नगर हो गया है। हर समय यहां यात्री आते रहते हैं। देशी और विदेशी पर्यटकों की खासी भीड़ खजुराहो में हमेशा बनी रहती है। पूर्वी मंदिर समूह में एक बड़े परकोटे से घिरा हुआ है जैन तीर्थ । दसवीं शताब्दि में बना हुआ विशाल और कलात्मक 'पार्श्वनाथ मंदिर' और बारहवीं शताब्दी की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण ‘आदिनाथ मंदिर' दर्शकों की दृष्टि को बांध लेते हैं। इन मन्दिरों की बाहरी भित्तियों पर
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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