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________________ माननीयश्री महोदय डॉ. शेखरचंद्रजी का अभिनंदन अभिनंदन और सम्मान की परंपरा भारत की प्राचीन । प्राचान | ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है यह जानकर मुझे प्रसन्नता हुई। परंपरा रही है। भगवान आदिनाथ के लंबे उपवास के | मेरी हार्दिक कामना है कि यह ग्रंथ विश्व मानवता के लिए पश्चात उन्हें प्रथम आहार कराने पर राजा श्रेयांस को | सरस, शीतल नीर के समान दिगदिगंत को शीतल करे चक्रवर्ती भरत ने 'दान तीर्थ प्रवर्तक' की पदवीं दी थी तभी | एवं 'स्मृतियों के वातायन से' का संदेश प्रदान करने में से गुणज्ञों के अभिनंदन की परंपरा चली आ रही है। सफलीभूत हो। इस अवसर पर आपकी ५१वीं विवाहतिथि ___ यह जानकर प्रसन्नता हुई कि जैन समाज के सुप्रसिद्ध | का महोत्सव भी मनाया जा रहा है। अतः आपका वैवाहिक डॉ. शेखरचन्द्र जैन, अहमदाबाद के सम्मान में अभिनंदन | जीवन अधिक मंगलमय बने यह आशीर्वाद। ग्रंथ प्रकाशित किया जा रहा है। डॉ. शेखरचंद्रजी जहाँ ___डॉ. शेखरचन्द्र जैन जैसाकि मैंने उन्हें हस्तिनापुर एवं लेखनी के धनी हैं वहाँ ओजस्वी वक्ता भी हैं। कई वर्षों से श्रवणबेलगोला में देखा और समझा उससे मेरी यह धारणा 'तीर्थंकर वाणी' मासिक पत्रिका का तीन भाषाओं में कुशल दृढ़ हुई कि वे उच्चकोटि के विद्वान, चिंतक और अपनी संपादन तथा प्रकाशन कर रहे हैं। आप न केवल भारत में बात को निर्भीकता से प्रस्तुत करने में कुशल हैं। अपितु विदेशों में भी प्रतिवर्ष जाकर जैनधर्म का प्रचार उनके द्वारा प्रकाशित तीर्थंकर वाणी के अध्ययन से प्रसार करते हैं। डॉ. शेखरचन्द्रजी धर्म प्रचार के साथ | उनके स्पष्ट विचारों से मैं अवगत हुआ।पू.आ.गुणधरनंदीजी साथ समाज सेवा में भी गहन रुचि रखते हैं। अहमदाबाद में की पुस्तकों का उन्होंने प्रकाशन किया है यह गौरव की एक अस्पताल का भी संचालन करते हैं। बात है। वे निस्पृह रूप से जनसेवा का कार्य धर्मादा अस्पताल वैसे तो सभी साधुओं के प्रति आपकी भक्ति है किन्तु द्वारा करके सही अर्थो में औषधि दान का पुण्य कमा गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के प्रति आपकी विशेष श्रद्धा-भक्ति है। तीर्थंकर ऋषभदेव विद्वत् महासंघ के आप अध्यक्ष रहे हैं। आपकी कर्मठता को देखते हुए ही आपको भगवान का आशीर्वाद सदा आप पर रहे। दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर ने 'गणिनी स्वस्ति भट्टारक श्री लक्ष्मीसेन स्वामी नवग्रह तीर्थ, वरुर ज्ञानमती पुरस्कार' से सम्मानित किया। ___ आप स्वस्थ एवं दीर्घ जीवी होकर सदैव धर्म की आराधना करते हुए धर्म के प्रचार-प्रसार में अग्रणी रहें, यही हमारा मंगल आशीर्वाद है। १०५ क्षुल्लक मोतीसागरजी
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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