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________________ 1332 मुतिया की जान जैन विद्याओं में रसायन : तब और अब म. श्री नंदलाल जैन (जैन सेन्टर, रीवा, म.प्र.) गोम्मटसार, जीव कांड, गाथा 334' के अनुसार केवली द्वारा ज्ञात पदार्थ या विषय अनंतानंत होते हैं। इनका अनंतवां भाग ही क्चन गोचर होता है और उसका अनंतवां भाग श्रुत निबद्ध होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से इसका अर्थ यह है कि हमारे शास्त्रों में सर्वज्ञों की वाणी का अनंतानंतवां भाग अर्थात 1/अनंत ही उपलब्ध है। इस गणितीय व्यंजक का मान लगभग शून्य है। वैज्ञानिक दृष्टि से हमारे वर्तमान शास्त्र तीर्थंकर वाणी नहीं, गणधर वाणी या आचार्यवाणी हैं और उनमें सर्वज्ञ के वचनों का शून्य-सम भाग ही निरूपित है। साथ ही हमारे शास्त्रों में कुछ श्रुत केवली आचार्यों को छोड़ अन्य उत्तरवर्ती आचार्यों को उत्कृष्ट ज्ञान का धारक एवं तपोबली ही माना गया है, सर्वज्ञ नहीं। वे अल्पज्ञ आप्त थे। उनके वर्णनों को स्थिरतथ्यी के बदले ऐतिहासिकतः तथ्यी मानना चाहिए। अन्य विद्वानों ने इस मान्यता का समर्थन किया है। फलतः सिद्धसेन के अनुसार, आध्यात्मिक विषयों में आगम को तथा भौतिक विषयों में तर्क बुद्धि और वैज्ञानिकता व परिमाणात्मकता के आधार पर परीक्षित करना चाहिए। हम यहाँ आध्यात्मिक वर्णनों पर विचार नहीं करेंगे, क्योंकि वे अभी वैज्ञानिक अन्वेषणों के विषय नहीं बने हैं, यद्यपि दो अतीन्द्रिय ज्ञानों की उत्पत्ति पर वैज्ञानिकों के प्रयोग सफल होते दिख रहे हैं तथा सामान्य जन भी उनके अधिकारी बनते दिखते हैं। फलतः हम यहां केवल भौतिक जगत-विशेषतः रसायन संबंधी वर्णनों पर गुणात्मकता के साथ परिणात्मकतः विवेचित करेंगे। अनेक जैन साधु और वैज्ञानिक विद्वान् इस प्रक्रिया में संलग्न हैं। उनका उद्देश्य प्रवाहशील ज्ञान का । अतीत, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी, गुणात्मक होते हुए भी श्रेष्ट सिद्ध करना प्रतीत होता है, । परिश्रम, यंत्र तथा प्रतिभा साध्य वर्तमान ज्ञान को परोक्षतः अपूर्ण कहना ही प्रतीत होता । है। यह सही है कि वर्तमान विज्ञान के अनेक परिणामों का मूल हमारे शास्त्रों में है, पर इन्हें क्रियाविधि पूर्वक विस्तारित करने का श्रेय तो विज्ञान को देना ही चाहिए। दो प्रवृत्तियाँ इस दृष्टि से वर्तमान में दो प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं : (1) अतीतवादी और (2) वर्तमानवादी। अतीतवादी वर्तमान को भी अतीत में कल्पित करते हैं और कामना करते वे अतीत में ही आ जावें। वे अतीत ज्ञान की व्याख्या भी वर्तमान तक ले जाते हैं। वे
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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