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________________ 318 सकता । एक के अंश को दूसरे के अंश में से घटा दो। ___ इस प्रकार का वर्णन ब्रह्मगुप्त और श्रीधर आदि ने किया है। एक भिन्न को दूसरी समान हर वाली भिन्न में से घटाने के उदाहरण 'सूर्य प्रज्ञप्ति' में कई जगह मिलते हैं। यथा-23 ___5305 15 - 5251 30 = 53 48 परन्तु जैनाचार्य महावीर ही पहले जैन गणितज्ञ थे। जिन्होंने दो या दो से अधिक भिन्नों के जोड़ अथवा घटाने के लिए लघुत्तम समापवर्त्य की कल्पना की। इसको उन्होंने 'निरुद्ध' के नाम से पुकारा। उन्होंने अपने 'गणितसारसंग्रह' में निरुद्ध की परिभाषा इस प्रकार दी है-25 'छेदों के महत्तम समापवर्तक और उससे भाग देने पर प्राप्त लब्धियों का गुणनफल निरुद्ध कहलाता है।' भिन्नों को समहर करने के लिए उनका नियम इस प्रकार है-26 'निरुद्ध को हर से भाग देकर जो लब्धि प्राप्त हो उससे हर और अंश दोनों को गुणा करो। ऐसा करने से सब भिन्नों का हर एक जैसा जो जाएगा।' - भिन्नों के संकलन और व्यवकलन के सम्बन्ध में 'त्रिलोकसार' की टीका में पं. टोडरमल जी ने लिखा है कि हर और अंशों का परस्पर गुणा कर जोड़ लेने से भिन्नों का संकलन आता है।7 मिन्नों का गुणन-भिन्नों को किसी पूर्णांक से गुणा करने के सूर्य प्रज्ञप्ति में अनेक उदाहरण मिलते हैं। यथा-28 60 29 32 x 12 = 35412 परन्तु भिन्न को भिन्न से गुणा करने का भी उदाहरण ‘सूर्यप्रज्ञप्ति' में उपलब्ध है। यथा-29 94526 42 x 1/2 = 47263 21 ब्रह्मगुप्त और अन्य गणितज्ञों ने भी भिन्नों के गुणन के सम्बन्ध में लिखा है कि अंशों के गुणनफल में हरों के गुणनफल का भाग देना ही भिन्नों का गुणनफल है, परन्तु महावीर ने क्रियालाघव की दृष्टि से वज्रापवर्तन विधि का भी उल्लेख किया है जो इस प्रकार है। “भिन्नों के गुणने में, पहले यदि सम्भव हो तो वज्रापवर्तन कर लेने के बाद अंशों को अंशों से और हरों । को हरों से गुणा करना चाहिए। __इस सम्बन्ध में पं. टोडरमल जी लिखते हैं कि भिन्नों का गुणा करने के लिए उनके अंश से अंश और हर से हर का गुणा किया जाता है। मिन्नों का भाग-भिन्न को किसी पूर्णांक से भाग देने से 'सूर्यप्रज्ञप्ति' में अनेक उदाहरण मिलते हैं। जैसे इस प्रकार के उदाहरण कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी उपलब्ध हैं। परन्तु किसी संख्या को भिन्न से भाग देने । का उदाहरण केवल एक ही मिलता है जो इस प्रकार है।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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