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________________ Damoomen 307 संस्कृत में जैन स्तोत्र-साहित्य ____ॉ . कु. मालती जैन यद्यपि जैन दर्शन ईश्वर को सृष्टि के सृजनकर्ता, पालनहार एवं संहारक के रूप में स्वीकार नहीं करता तथापि जैन आचार्यों ने जिन भक्ति से संबंधित साहित्य की संरचना प्रचुर मात्रा में की है। वे स्वीकार करते हैं - 'सा जिव्हा या जिनं स्तौति' ईश्वर के स्तवन से पाप क्षण में उसी प्रकार विनष्ट हो जाते हैं जिस तरह सूर्य की किरणों से अंधकार नष्ट हो जाता है। त्वत्संस्ततेन भवसंतति-सन्निवद्धं, पापं क्षणात् क्षयमुपैति शरीरभाजाम् आक्रान्त लोकमलिनीलमशेषमाश, सर्याशभिन्नमिवशावरमंधकार॥ जैन- साहित्य में जहाँ हमें ज्ञान और वैराग्य के गगनचुम्बी हिमालय की पर्वतश्रृंखलायें दृष्टिगत होती है वहाँ भक्ति भागीरथी की अजस्र धारा की कलकल ध्वनि भी श्रवणगत होती है। जैनाचार्यों ने अपने आराध्य देवों के चरम कमलों में देववाणी संस्कृत के माध्यम से जिन भाव प्रसूनों को समर्पित किया है उसमें स्तोत्र-साहित्य का विशिष्ट महत्त्व है। स्तोत्र शब्द अदादिगण की उभयवदी स्तु धातु से ष्ट्रन प्रत्यय का निष्पन्न रूप है जिसका । अर्थ, गुण संकीर्तन है। गुण संकीर्तन आराधक द्वारा आराध्य की भक्ति का एक प्रकार है और यह भक्ति विशुद्ध भावना होने पर भवनाशिनी होती है। वादीभसूरि ने । क्षत्रचूडामणिनीतिमहाकाव्य के मंगलाचरण में भक्ति को मुक्ति कन्या के पाणिग्रहण के । शुल्क रूप में कहा है - श्रीपतिर्भगवान पुष्पाद भक्तानां वः समीहितं। यद्भक्ति शुल्कतामेति मुक्ति कन्या करग्रहे॥ स्तुति काव्य की दृष्टि से जैन वांङमय बहुत विशाल, समृद्ध तथा वैविध्यपूर्ण है। । संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, गुजराती, मराठी, राजस्थानी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में तीर्थंकरों के बहुविध स्तोत्र काव्य सैंकड़ों की संख्या में विद्यमान हैं। तीर्थंकर । महावीर के प्रधान गणधर इन्द्रभूति गौतम ने अर्द्धमागधी भाषा में भावपूर्ण स्तोत्र की । रचना की थी। आचार्य भद्रबाह के उवसग्गहर स्तोत्र का उल्लेख भी प्राप्त होता है।। आचार्य कुन्दकुन्द की भक्तियाँ प्रसिद्ध हैं। विशेषकर संस्कृत भाषा के जैन स्तोत्र भक्ति । साहित्य में अपना विशेष स्थान रखते हैं। ज्ञात एवं उपलब्ध स्तोत्रकारों एवं स्तोत्रों में ।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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