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________________ 2991 विरोधी है। धर्म और विज्ञान का समन्वय करने में सबसे बड़ी बाधा तब उपस्थित होती है जब ज्ञान की प्रामाणिकता के प्रश्न पर दोनों एक दूसरे से पृथक् हो जाते हैं। विज्ञान जिसे प्रामाणिक मानता है धर्म उसकी प्रामाणिकता को संदिग्ध दृष्टि से देखता है। ___ डॉ. भार्गवने इसी समस्या का विश्लेषण करते हुये कहा है कि वैज्ञानिकों की पद्धति ऐसी है कि उसमें नवीन उद्भावना को भी किसी पुराने व्यक्ति या ग्रंथ के नाम पर ही चलाया जा सकता है। नवीन उद्भावनाकी भी धर्म और दर्शनमें नवीनता स्वीकार नहीं की जा सकती। नवीनता का धर्म दर्शनके क्षेत्र में अर्थ है 'अप्रामाणिकता' किन्तु विज्ञान के क्षेत्र में 'नवीनता' का अर्थ है मौलिकता। उपरोक्त विवेचन के संबंध में यह बतलाना आवश्यक है कि जैन धर्म में गणित ज्योतिष, परमाणु एवं कर्म विषयक जो तंत्र प्रणालियाँ निर्मित की गईं, वे अपने आपमें गणितमय तथा परिणाम देने में सक्षम रहीं। वेदांग ज्योतिष को विकसित करने का श्रेय भी उसे ही जाता है। साथ ही कर्म सिद्धान्त का सूक्ष्मतम अदृष्ट वस्तु की घटनाओं का गणितमय विवेचन प्रयोगमें न भी लाया गया हो किन्तु वह न्यायकी गहन सामग्री बना है। अतः प्रणाली से जो संभावनायें अविभाजित होती। जैनधर्म विश्वास और अविश्वास सभी एकान्तिक दृष्टियों का विरोध करता है और साथ ही यह मानता है कि सत्य चाहे किसी स्रोत से आये, हमें उसे ग्रहण करना चाहिये। इसमें आप्तोदेशको आँख मूंदकर मानने पर बल नहीं दिया जाता। __आधुनिक युग निर्विवाद रूपसे विज्ञान का युग है। अब धर्म और दर्शनका स्थान विज्ञानने ले लिया है और वही ज्ञान और व्यवहार के क्षेत्र में अग्रगण्य और दिग्दर्शक बन गया है। वैज्ञानिक तौर तकनीकी प्रगतिने मानवीय सभ्यता और संस्कृति को नई दिशा दी है। उसे एक नया विश्व दर्शन दिया है। आधुनिक युग में वही दर्शन और धर्म उपयोगी हो सकता है जो विज्ञान सम्मत हो, विज्ञानकी मान्यताओं के अनुकूल और विज्ञानकी कसौटी पर खरा उतरने में सक्षम हो। कोई भी धर्म तब प्रभावशाली हो सकता है जब उसकी अभिवृत्ति वैज्ञानिक हो और उसे आधुनिक विज्ञान का समर्थन प्राप्त हो। अतएव आधुनिक संदर्भ में जैन दर्शनकी उपयोगिताका विचार करते समय दो प्रश्न स्वभावतः हमारे समक्ष उठते हैं १. क्या जैन दर्शन आधुनिक विज्ञानकी मान्यताओं के अनुकूल है या उसे विज्ञान का समर्थन प्राप्त है? २. आधुनिक विज्ञान की जो भी बुराईयाँ हैं, उनसे क्या यह धर्म मनुष्यको त्राण दिला सकता है, उसे चिन्ता और दुःखसे मुक्त कर सकता है? । जैन दर्शन अत्यन्त विशाल, सर्वग्राही एवं उदारवादी माना गया है। वह विभिन्न मान्यताओं के बीच समन्वय । करने एवं सभीको उचित स्थान देने को तत्पर है। इसका दृष्टिकोण भी बहुत अंशोंमें वैज्ञानिक प्रवृत्ति से पर्याप्त ! मेल खाता प्रतीत हुआ है। साथ ही साथ यह बुराईयों को दूर कर विनाशके कगार पर खड़ी मानवता को सुख शान्ति एवं मुक्ति का संदेश भी देता है। इस दृष्टि से जैन धर्म इतना समृद्ध और मान्य हुआ है कि एक ओर । विज्ञान के अनुकूल है तो दूसरी ओर विज्ञान के अशुभ प्रतिफलों से मुक्त भी है। यह कुछ अंशों में उसकी पूरक । प्रक्रिया भी हो सकता है और विज्ञान को मानवतावादी और कल्याणकारी दृष्टिकोण भी दे सकता है। सर्वमान्य रूपसे विज्ञान और धर्म विघटक नहीं संपूरक हैं। विज्ञान गति देता है। धर्म दिशा देता है। धर्म जीवन का प्रयोग और विज्ञान जीवनकी प्रयोगशाला है। धर्म जीवनकी बुनियाद है और विज्ञान इसका शिखर है। जीवन में गति न हो तो जड़ता छा जायेगी और दिशा न हो तो जीवन भटक जायेगा। अतः धर्म और विज्ञान दोनों का ।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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