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________________ 284 1 परस्पर सहायता से निमित्त होना यह जीवों का उपकार है। वैश्विक पारिस्थितिकी स्मृतियों के वातायन से "परस्परोपग्रहो द्रव्याणाम्” ( आ. कनकनन्दी) विश्व के सम्पूर्ण द्रव्य ( जीव द्रव्य, पुद्गल द्रव्य (भौतिक तत्त्व एवं ऊर्जा), गति माध्यम द्रव्य, स्थिति माध्यम द्रव्य, काल द्रव्य एवं आकाश द्रव्य) परस्पर सहयोगी हैं, अन्तः - सम्बन्धी हैं, इनमें से एक द्रव्य के अभाव से सम्पूर्ण विश्व - व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। ऐसा पूर्ण शोध-बोध अभी तक आधुनिक विज्ञान में नहीं है। प्राचीन भारतीय विज्ञान में केवल शब्द प्रदूषण वायु प्रदूषण का ही वर्णन नहीं हैं, इसके सूक्ष्म एवं व्यापक वर्णन के साथसाथ भाव प्रदूषण, समाज प्रदूषण, सांस्कृतिक प्रदूषण आदि का भी सूक्ष्म व्यापक वर्णन है। 8. भारतीय गणित विज्ञान पाश्चात्य विज्ञान से भारतीय विज्ञान श्रेष्ठ होने का एक महानतम कारण भारतीय गणित विज्ञान है। वैसे तो देश-विदेश के सभी विद्वान् एकमत से स्वीकारते हैं कि गणित, दशमलव पद्धति, शून्य आदि का प्रचार-प्रसार शोध-बोध भारत में तथा भारत से हुआ है। आचार्य वीरसेन स्वामी ने कहा कि जो विषय गणित से सिद्ध नहीं होता है वह यथार्थ नहीं है । इसीलिए तो भारत में उनमें से भी विशेषतः जैन धर्म में प्रत्येक पदार्थ विषय को गणित से वर्णित किया गया है। जैनधर्म में केवल मूर्तिक स्थूल, पदार्थों का ही वर्णन गणित से नहीं किया है । अपरंच ! समस्त मूर्तिक- अमूर्तिक, सूक्ष्म - स्थूल, चेतन-अचेतन, सांसारिक - आध्यात्मिक वर्णन गणित से किया है। जैनधर्म में शून्य (0) से लेकर संख्यात - असंख्यात, अनन्त तक का वर्णन है। सामान्यतः ( 1 ) लौकिक ( 2 ) अलौकिक रूप से गणित के दो भेद हैं। जैनधर्म में जिस प्रकार व्यवस्थित क्रमबद्ध संख्यात से लेकर अक्षय अनन्तानन्त का वर्णन, जिस पद्धति से किया गया है वैसा वर्णन मुझे अन्यत्र अभी तक कहीं भी देखने को नहीं मिला है। आधुनिक विज्ञान, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिक, अन्तरिक्ष - यात्रा में भी गणित ( प्रमेय = प्र+मेय अर्थात् । प्रकृष्ट मे - मापना) का बहुत महत्त्व है। इतना ही नहीं व्यापार से लेकर अध्यात्म तक में गणित का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गणित के महत्त्व को प्रतिपादित करनेवाला एक श्लोक प्राचीन काल से प्रचलित है ।— "यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा । तद्वद् वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्धनिस्थितम् ॥” अर्थात् जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि सबसे ऊपर रहती है उसी प्रकार वेदांग और शास्त्रों में गणित सर्वोच्च स्थान पर स्थित है। जैन धर्म में 6 द्रव्य, 7 तत्व, 9 पदार्थ, रत्नत्रय आदि को व्यवस्थित सटीक, अधिगम /परिज्ञान करने के ! विविध उपायों में से कुछ उपाय निम्नलिखित हैं “सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च ॥" (स्वतंत्रता के सूत्र) अर्थात् सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च जीवादीनां द्रव्याणां अधिगमः भवति। 1. सत्, 2. संख्या, 3. क्षेत्र, 4. स्पर्शन, 5. काल, 6. अन्तर, 7. भाव, 8. अल्पबहुत्व के द्वारा भी जीवादि पदार्थों का अधिगम होता है। गणित में केवल अंकगणित या बीजगणित का प्रचलन भारतवर्ष में व्यापार, गृहकार्य में ही नहीं होता था परन्तु इसके साथ-साथ बीजगणित, रेखागणित का भी पूर्ण व्यापक विकास हुआ था और उपर्युक्त सम्पूर्ण गणित का प्रयोग लौकिक से आध्यात्मिक अणु से ब्रह्माण्ड तक में प्रयोग में आता था।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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