SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ PIRATRAMA 241 श्रावकाचार में प्रतिपादित जैन जीवनशैली प्रो. फूलचन्द जैन 'प्रेमी' (वाराणसी) विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्रात्मक पद्धति वाले महान् भारत देश का नागरिक होना अपने आप में महान् गौरव का विषय है। एक आदर्श नागरिक अपनी संयमशीलता, नैतिकता और कर्तव्यशीलता के द्वारा स्वयं आत्मोन्नति करता हुआ अपने देश, समाज, धर्म एवं संस्कृति के ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व के उत्थान एवं कल्याण में अपने जीवन की सार्थकता मानता है। ऐसा आदर्श नागरिक बनने की संपूर्ण शिक्षा हमें जैन श्रावकाचार के परिपालन से प्राप्त होती है। हमें ऐसी जीवनशैली प्रदान करता है, जिसमें मानव जीवन पूरी तरह सार्थक हो जाता है। तीर्थंकरों एवं उनकी परंपरा के आचार्यों द्वारा प्रतिपादित मूल्यबोध के स्तर पर आज जो कुछ हमारे पास है, वह हजारों वर्षों से चली आ रही हमारी जीवन शैली की देन है, जिसे हम श्रावकाचार के निचोड़ के आधार पर बनी जैन । जीवनशैली कह सकते हैं। ___ जैन परम्परा में आचार के स्तर पर श्रावक और साधु- ये दो श्रेणियां हैं। श्रावक गृहस्थ होता है, उसे जीवन के संघर्ष में हर प्रकार का कार्य करना पड़ता है। जीविकोपार्जन के साथ ही आत्मोत्थान एवं समाजोत्थान के कार्य करना पड़ते हैं। अतः उसे ऐसे ही । आचारगत नियमों आदि के पालन का विधान किया गया, जो व्यवहार्य हों। क्योंकि सिद्धान्तों की वास्तविकता क्रियात्मक जीवन में ही चरितार्थ ही सकती है। इसीलिए श्रावकोचित्त आचार-विचार के प्रतिपादन और परिपालन का विधान जैन जीवनशैली की विशेषता है। ___ श्रावकाचार ने सम्भवतः रूप से जीवन में समरसता और संतुलन उत्पन्न किया है। । श्रावकाचार के परिपालन से जमीन के भीतर निरंतर असंख्यात सूक्ष्म जीवों की निश्चित । उपस्थिति और उनकी हिंसा से बचने के लिए आलू, प्याज, लहसुन, मूली, अरबी, शकरकन्द आदि अनेक कन्दमूलों के सेवन का त्याग बहुबीजक का त्याग एक आदर्श श्रावक का प्रमुख कर्तव्य बतलाया गया है। आजकल मधुमेह, गैस आदि रोगों की उत्पत्ति में जमीकन्द की काफी भूमिका होती है। जो श्रावक व्रतों का पालन करता हो और । जमीकन्द का त्यागी न हो तो उसके व्रतपालन निष्फल तो माने ही जाते हैं, साथ ही ऐसा श्रावक हंसी का भी पात्र बनता है।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy