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________________ 12381 | छानने पर 48 मिनिट की अवधि तक ही उसे प्रासुक माना जाता है। जल में इश्चिरिचिया कोलाई एवं क्लोस्ट्रिडियम नामक जीवाणु अत्यंत ज्यादा मात्र में होते हैं। जो उक्त अवधि के पश्चात् पुनः सक्रिय हो जाते हैं। ___5. वनस्पति विज्ञान के अनुसार पंच उदम्बर फल वास्तव में फल न होकर असंख्य फूलों का समूह है। इसके | भीतर सैकड़ों पुष्प समूह रूप में विद्यमान रहते हैं। आयुर्वेद में इसे 'जन्तु फल' भी कहा गया है। इस पुष्पासन में सैकड़ों कीट परागण हेतु प्रवेश करते हैं। एवं अन्दर ही मादा अपने अण्डे देती है। बहुत से कीट अंदर ही मर जाते । हैं। अतः उदम्बर फल कीड़ों का जन्म-स्थान एवं शव-ग्रह दोनों ही हैं। । निगोदिया जीव एवं आधुनिक सूक्ष्म जीव विज्ञान ____ आधुनिक सूक्ष्म जीव विज्ञान की दृष्टि से अभी तक ज्ञात सूक्ष्म, जीव, जीवाणु (बैक्टीरिया), एवं विषाणु (वायरस) हैं। माइक्रोप्लाज्मा भी अति सूक्ष्म जीव है। इन सूक्ष्म जीवों की तुलना निगोदिया जीवों से कुछ मायने में । की जा सकती है __ बैक्टीरिया और वायरस आदि सूक्ष्म जीवों की तरह निगोदिया जीव भी वातावरण में ठसाठस भरे हुए हैं। । आधुनिक सूक्ष्म जीवों की तरह निगोदिया जीव भी अनन्त होते हैं। एवं एक ही पोशक कोशिका या सम्पूर्ण ! शरीर में रहते हैं। __जिस प्रकार सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति के आश्रित अनन्त साधारण या निगोदिया जीव पाये जाते हैं। इसी प्रकार हजारों ऐसी वनस्पतियाँ हैं जिनकी जड़, फल, फूल, पत्ती इत्यादि में बैक्टीरिया या वायरस का निवास होता है। निगोदिया जीवों की तरह बैक्टीरिया की अनेक प्रजातियाँ गोलाकार होती हैं। वायरस भी निगोदिया जीवों के समान आयातकार या गोलाकार दोनों प्रकार के होते हैं। जैन धर्म के अनुसार बोने के अन्तमुर्हत पर्यन्त सभी वनस्पतियाँ अप्रतिष्ठित होती है, बाद में निगोदिया जीवों द्वारा निवास बना लेने से सप्रतिष्ठित हो जाती हैं। वनस्पति विज्ञान के अनुसार अनेक पौधों के बोने के उपरांत जैसे ही अंकुरण प्रारम्भ होकर जड़ें बनना प्रारम्भ होती हैं वैसे ही इन जड़ों में छोटी-छोटी गांठें बन जाती हैं। जिसमें बैक्टीरिया अपना निवास बना लेते हैं। निगोदिया की तरह बैक्टीरिया एवं वायरस जीव भी इतनी तीव्र गति से जन्म लेते हैं एवं वृद्धि करते हैं कि यह ! देख पाना असंभव हो जाता है कि कौन सा जीव नया उत्पन्न हुआ है एवं कौन सा पुराना। जिस प्रकार निगोदिया का सम्पूर्छन जन्म होता है इसी प्रकार अधिकांश बैक्टीरिया भी अलैंगिक एवं बर्थी जनन से उत्पन्न होते हैं। उक्त कारणों के अलावा अनेक असमानताएं भी दोनों के बीच हो सकती हैं परन्तु फिर भी दोनों ही प्रकार के जीव अपनी अपनी जगह अति सूक्ष्म जीव स्थापित किये गये हैं। बनस्पतियों में लेश्या, कषाय, संज्ञा एवं संवेदना : जैन दर्शन में वर्णन किया गया है कि वनस्पतियों में भी अन्य जीवों की तरह लेश्यायें, कषायें, संज्ञाएं एवं संवेदनाएं होती हैं। आधुनिक वनस्पति विज्ञानियों ने भी अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया है। कुछ उदाहरण निम्न प्रकार हैं:
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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