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________________ PAREEFINNERATORS 209 के सत्त्व को ही समेट कर इस कृति में नवनीत के रूप में प्रस्तुत किया है। । कृति में प्रारंभ में जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में सामायिक को ध्यान की जननी प्रस्तुत करते हुए समस्त ध्यान पद्धतियों ! को उसीका विकसित रूप माना है। इसी संदर्भ में उन्होंने जैन दर्शन में ध्यान योग की परिभाषा, प्रकार आदि का बहुत ही सुंदर निरूपण किया है। मूलतः वे यही प्रस्तुत करना चाहते हैं कि बर्हिजगत से अंर्तजगत में उतरते हुए संकल्प शक्ति के साथ जितेन्द्रियता की और बढ़ते हुए, चित्त शुद्धि की साधना ही ध्यान है- जो मुक्ति का आलंबन है। ध्यान | का मूल प्रयोजन तो कषायरहित होकर आर्त और रौद्र ध्यान से मुक्ति होकर धर्म ध्यान में स्थिर होते हुए शुक्ल ध्यान ! तक ऊर्ध्वगमन करना है। जिसका मूल है संयम की साधना, मन और इन्द्रियों का निग्रह। कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें प्रेक्टिकल रूप से ध्यान कैसे किया जाय उसका चित्रों के साथ । उल्लेख किया गया है। सविशेष रूप से प्रारंभ में देहशुद्धि, वस्त्रशुद्धि, स्थानशुद्धि को महत्त्वपूर्ण माना गया है। । तदुपरांत ध्यान में आत्मा की साधना से पूर्व देह की साधना अति आवश्यक होने से कैसे बैलें, कैसे देखें, कैसे श्वास .. लें, कैसे ऊर्जा प्राप्त करें और कैसे णमोकार का उच्चारण करें, तथा उस उच्चारण के साथ कैसे पंच परमेष्ठी के दर्शन हो- इसका सांगोपांग वर्णन किया है। 48 मिनिट की इस क्रिया में व्यक्ति अपने ही अंदर उगते हुए बालरवि की किरणों में अपने आराध्य के दर्शन भी करे और अपने अंदर महसूस भी करे, यह प्रस्तुत किया है। लेखक स्वयं पिछले 1 20-25 वर्षों से णमोकार मंत्र के ध्यान को शिविर आयोजित करके ध्यान करा रहे हैं। कृति पठनीय, मननीय एवं | अनुकरणीय है। आचार्य कवि विपासागर का। आचार्य कवि विद्यासागर का काव्य वैभव प्रस्तुत कृति आ. श्री विद्यासागर की कालजयी कृतियाँ- 'मूकमाटी', 'नर्मदा का नरम कंकर', 'तोता क्यों रोता?', 'चेतना के गहराव में' एवं 'डूबों मत लगाओ डूबकी' । की काव्यशास्त्रीय दृष्टि से की गई समीक्षा है। कृति का प्रकाशन 1997 में किया गया था। ___ आ. विद्यासागरजी उच्च कोटि के साधक संत तो हैं ही, परंतु असाधारण प्रतिभा के कवि हैं। जिन्होंने अपनी कृतियों द्वारा समाज व्यवस्था, धर्म, जीवन का लक्ष्य मोक्ष आदि पर काव्यरचना की है। 'मूकमाटी' उनका सर्वाधिक चर्चित महाकाव्य है। जिसमें एक माटी कैसे साधना में कष्ट सहते हुए भी अडिग रहकर मंगल कलश बनती है- उसकी कथा है, जो किसी भी व्यक्ति को संसार से ऊपर उठकर मोक्ष तक की यात्रा कराने का संदेश देती है। समीक्षकने लिखा है 'मूक माटी की सुगंधी फैलती बन आज चंदन, शब्द का दे अर्घ्य स्वामी, करें शेखर चरण वंदन।' 'नर्मदा का नरम कंकर' कवि की मुक्तक रचनाओं का संग्रह है। जिसकी प्रत्येक कविता मधुर गीत सी लगती है। भक्त भक्ति में सराबोर होकर कटीले कंकरों को भी नरम बनाकर जीवन की नदी को पार कर जाता है। इसी प्रकार 'तोता क्यों रोता' में उनकी ५५ कविताओं का संग्रह है जिसमें उनकी आत्मानुभूति व्यक्त हुई है। ब्रह्मानंद सहोदर । कवि अपनी आध्यात्मिक रचनाओं के द्वारा इनका आनंद जन-जन तक पहुँचाना चाहता है। 'चेतना के गहराव मे' । में भी आध्यात्मिक गीतों का संग्रह है। जिसमें कवि प्रकृति के सौंदर्य में अध्यात्म के खिलते पुष्पों की सुगंधी को पा । लेता है। कवि लहरों में भी जीवन के तथ्य और सत्य को खोजता है और बाह्य स्तरों से अंतर की गहराईयों में उतर जाता है तभी उसे स्वयं प्रकाश्य आत्मा के दर्शन होते हैं। 'डूबो मत लगाओ डूबकी' भी ऐसी ही आध्यात्मिक कविताओं का संकलन है जिसमें शब्द शिल्पी ने शब्दों को तराशकर उस पुनीत घाट का निर्माण किया है कि अब ।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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