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________________ ARVINDAmsane स्मृतियों के वातायन । 1206 । टूटते संकल्प _ 'टूटते संकल्प' डॉ. शेखरचन्द्र जैन का प्रथम मौलिक कहानी का संग्रह है। जिसका प्रकाशन सन् 1987 में चिंतन प्रकाशन, कानपुर से किया गया था। लेखक ने अपनी * इस कृति का समर्पण संग्रह के उन सभी पात्रों को किया है जो संकल्पों के टूटन में भी संघर्षरत हैं। | इस संग्रह की भूमिका 'मेरी दृष्टि' में शीर्षक द्वारा देश के प्रसिद्ध कहानी-उपन्यासकार श्री डॉ. रामदरशजी मिश्र, जो कभी लेखक के अध्यापक रहे हैं- ने लिखी है। जिसमें वे डा.शेखर जैन लिखते हैं 'टूटते संकल्प, समकालीन जीवन यथार्थ की यात्रा करता है। शेखर जैनने समय की त्रासदी को पहिचाना है। कहानियों में व्यवस्था के क्रूर और कुरूप चेहरे को निर्ममता से उघाड़ा है। अधिकांशतः ! कहानियाँ पारिवारिक संबंधो की नई चेतना को उभारती हैं।' ___कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कहानियों को पढ़ते समय ऐसा महसूस होता है कि वे लेखक की आंतरिक छटपटाहट को व्यक्त कर रही हैं, और पढ़ते-पढ़ते पाठक को कहीं न कहीं अपने अंदर की छटपटाहट उसमें महसूस होती है। यह सत्य है कि हमारी सबकी आकांक्षा, आशा प्रतिदिन खंडित हो रही है। आजका मानव भौतिकता की दौड़ में भ्रष्टाचार, विषमता के मकड़जाल में फँसता जा रहा है, और अपनी ही कुण्ठाओं में घुट रहा है।" ___ पूरी कृति में राजनीति, भाई-भतीजावाद, शैक्षणिक संस्थाओं के दलालों द्वारा शोषण आदि तथ्यों को उजागर किया है। कहीं पुलिस हरीश नामक मजदूर नेता को अकारण पकड़ लेती है और पिटाई करके उसे व्यवस्था का आदमी होने पर मजबूर करती है। इस कहानी में व्यक्ति की मानसिक द्वंदता को बखूबी प्रस्तुत किया है। अल्पविराम कहानी में सुधा का जीवन निरंतर परतंत्र बनी रहने की नियति झेलने के सिवाय क्या रह जाता है? 'प्रेम बलिदान', 'अवांछित', 'संग-असंग', 'भूख', 'ईर्ष्या', 'वारांगना' आदि कहानियों में नारी पुरूष के संबंधों तथा पारिवारिक यथार्थ को खोलती हैं। 'अवांछित' और 'वारांगना' प्रभावशाली कथायें हैं तो 'भूख' नारी के वात्सल्य से जुड़कर यथार्थवादी हो गई है। 'निराश्रित' कहानी वर्तमान यथार्थ संदर्भ की सशक्त हृदय को छूने वाली रचना है। लेखक अंधेरेमें रास्ता खोजने के लिये बेचेन है, जो नये लेखक की शक्ति और संभावना के प्रति आश्वस्त करती है। राष्ट्रीय कवि दिनकर और उनकी काव्यकला प्रस्तुत 'राष्ट्रीय कवि दिनकर और उनकी काव्यकला' डॉ. जैन की पीएच.डी. का महानिबंध है। जिसका प्रकाशन सन् 1973 में जयपुर पुस्तक सदन, जयपुर से किया गया था। कृति उन्होंने अपने पू. पिताजी एवं माताजी को समर्पित की है जो उनकी प्रगति यात्रा के आशिर्वाद दाता रहे। डॉ. जैन ने गुजरात विश्व विद्यालय के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. अम्बाशंकर नागरजी के निर्देशन में यह शोध कार्य संपन्न किया था। ग्रन्थ लगभग ३५० पृष्ठों का है। जिसमें सात अध्याय है। ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशिष्टता यह है कि इसके लिए स्वयं कवि श्री
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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