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________________ 156 रहती थी। मैनेजमेन्ट की खुशी - नाखुशी पर नौकरी का दारो-मदार था । हम जींजर ग्रुप के लोगों पर ऐसे ही संकट के बादल मँडरा रहे थे। मैनेजमेन्ट में श्री हरभाई त्रिवेदी जैसे महान शिक्षणकार, विद्याप्रेमी, सत्यनिष्ठ एवं तटस्थ व्यक्ति थे तो साथही श्री जगुभाई परीख साहब जो कभी सौराष्ट्र राज्य में मंत्री थे - वे अध्यक्ष थे। दोनों महानुभाव सचमुच तटस्थ एवं न्यायप्रिय थे। श्री हरभाई त्रिवेदी तो ७०-७५ वर्ष की उम्र में भी युवकों की तरह उत्साही थे । वे मुझसे विशेष ! प्रीति रखते थे। मैं महावीर जैन विद्यालय का गृहपति था। वे विद्यालय पधार चुके थे। मेरे लेखन कार्य को पढ़ चुके अतः मुझे स्नेह से जैनमुनि कहते थे । नवनिर्माण आंदोलन का लाभ उस समय शिक्षण जगत में एक ऐसी घटना हुई जिससे १५ मार्च को अध्यापकों पर लटकने वाली तलवार तो दूर हो गई उल्टे सभी को नियमित रूप से स्थायी करना पड़ा। यह घटना थी नवनिर्माण के आंदोलन की। पूरे गुजरात में इसका नेतृत्व अध्यापकों और विद्यार्थियों के पास था। जिसमें अध्यापकों की भूमिका विशेष थी। वात्सव में यह आंदोलन गुजरात युनिवर्सिटी अध्यापक मंडल की ओर से प्रो. के. एस. शास्त्री के नेतृत्व में चलाया जाता था। जिसमें पूरे गुजरात के अध्यापक सक्रिय हो गये थे । जनता का अकल्पनीय सहयोग प्राप्त होने से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री चिमनभाई पटेल की सरकार ही धराशायी हो गई थी । मैंने भी उसमें भावनगर युनिवर्सिटी एवं कॉलेज के अध्यापक मंडल के कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में विशेष हिस्सा लिया। भावनगर में गिरफ्तारी दी और भागकर अहमदाबाद भी आ गये। इस अध्यापक आंदोलन की सबसे बड़ी फलश्रुति यह थी कि कॉलेज के मैनेजमेन्ट की मनमानी बंद हो गई। इससे नौकरी में एक स्थिरता प्राप्त हुई। सीनियोरिटी उन दिनों कॉलेज में अध्यापकों की तीन श्रेणियाँ हुआ करतीं थीं । (१) प्रोफेसर (२) व्याख्याता (३) ट्यूटर । हम सात-आठ नये विभागाध्यक्ष थे। एक-दो कॉलेज में से ही पदोन्नति पाकर प्राध्यापक बने थे। प्रश्न था कि सीनियोरिटी कैसे तय की जाय । आचार्य श्री तख्तसिंहजी परमार के समक्ष प्रश्न को लाया गया। जो प्राध्यापक पहले से ही कॉलेज में थे उनकी प्रस्तुति थी कि कॉलेज की वर्षों की सेवा को ध्यान में रखकर उन्हें ही सीनियर माना जाये। जबकि हमलोगों की प्रस्तुति थी कि प्राध्यापक का पद ही सीनियोरिटी के लिये ध्यान में लिया जाय । चूँकि हम लोगों की सभी नियुक्तियाँ एक ही तारीख को हुई थी अतः तय किया गया कि सेवा की कुल अवधि ध्यान में ली जाय। साथ ही शैक्षणिक योग्यता को भी वरीयता प्रदान की जाय। इसपर सभी एकमत हो सके। सभी अध्यापकों में मैं ही अकेला पी-एच. डी. था । मेरा सेवाकार्य भी व्याख्याता एवं प्राध्यापक का ११ वर्ष का हो चुका था। अतः मुझे ही कॉलेज के आचार्य के बाद सीनियर मान लिया गया । परोक्ष रूप से यह उपाचार्य का ही पद था । नियमानुसार मुझे प्राचार्य की अनुपस्थिति में प्राचार्य का चार्ज प्राप्त होने लगा । विभागाध्यक्ष होने से युनिवर्सिटी में पद विभागाध्यक्ष होने के कारण सौराष्ट्र युनिवर्सिटी के नियमानुसार ( उस समय भावनगर युनिवर्सिटी अलग नहीं थी) मुझे हिन्दी की अभ्यास समिति का सदस्य बनने का अवसर मिला। इस हेतु अनेकबार राजकोट मीटिंगो में
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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