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________________ 152 स्मृतियों के वातायन समय सुबह का था । सो लगभग १२ बजे से पूरे दिन-रात विद्यालय में ही रहता । विद्यार्थियों के साथ उनकी 1 व्यवस्था, सुविधा, अभ्यास, परेशानियों में उनका मार्गदर्शक, दोस्त, शिक्षक एवं उनका पालक बनकर रहने लगा। विद्यालय में १९७२ से १९८२ तक दश वर्ष रहा। विद्यालय की खट्टी-मीठी स्मृतियाँ यहाँ भावनगर में जैसा कि मैंने पहले लिखा है विद्यालय शहर से दूर नाले के किनारे एकांत में था । यहाँ कुछ गुंडा तत्व विद्यार्थियों को दबाकर छोटी रकमे वसूल करते थे। विद्यार्थी भयभीत रहते थे। एक रबारी कमरों में जाकर विद्यार्थियों से पैसे वसूल करता था । भय के कारण वे मुझसे कहने में भी डरते थे। किसी तरह मुझे पता चला । विद्यार्थियों ने भी हकीकत बताई। हमारा चौकीदार भी रबारी था। पर थोड़ा डरपोक । मैंने उससे कहा 'कल । शाम तक उसे र पास लाओ अन्यथा तुम्हारी नौकरी नहीं रहेगी।' दूसरे दिन वह उस रबारी को लाया । मेरे अंदर 1 एन.सी.सी. के सैकण्ड लैफ्टिनेन्ट का खुमार था- फिर अपनी धाक भी जमानी थी अतः कुछ दृढ़ निश्चय कर 1 खुमारी से उस रबारी को अपने कार्यालय में ले गया। दरवाजा बंद किया। एक झूठा फोन डी.एस.पी के नाम से किया और बैल्ट निकालकर उसे मारने की धमकी भी दी और प्रहार करने को हाथ भी उठाया। रबारी मेरे उग्र रूप व पुलिस से संपर्क को समझकर गिड़गिड़ाने लगा। उसने माफी माँगी और जितने भी पैसे ले गया था वह सब लौटाने का वचन देकर गया। शाम को पैसे तो लौटा ही गया उस दिन सभी विद्यार्थियों को मुफ्त में दूध भी पिला गया। इस घटना से इस एरिया में मेरी धाक जम गई । विद्यार्थी भी मेरी निडरता से स्वयं को रक्षित मानने लगे। इसी प्रकार एक बार एक रसोईया के साथ घटना घटी। वह शरीर से ताकतवर था । गुंडों के संपर्क में था । अतः । खराब रसोई होने पर भी विद्यार्थियों पर रोब जमाता था। डर के मारे विद्यार्थी उसकी शिकायत नहीं करते थे। एकदिन मैंने उसे कार्यालय में बुलाकर समझाना चाहा। पर वह तो उल्टे मुझ पर बरस पड़ा। मुझे धोंस में लेना चाहा और ऑफिस से बाहर निकल गया। मुझे भी गुस्सा आया। चार-पाँच लड़के भी खड़े थे। मैंने उसे जोर से थप्पड़ । मारा, सो वह रेलींग से लगभग चार-पाँच फुट नीचे गिरा । हमारे दो-तीन लड़के भी उस पर टूट पड़े। खूब पिटाई की। वह भाग कर पीछे सरदारनगर में गुंडों के पास गया । जब उन गुंडो को पता चला कि वह मेरे विरुद्ध कार्यवाही आया है तो वे सब मुकर गये बोले- 'जैन साहब के विरुद्ध हम कुछ नहीं करेंगे। वे बड़े पहुँच वाले हैं- हमारे गुरू हैं। इधर हमने पुलिस में भी फरियाद लिखाई सो पुलिस भी आ गई। उसे ढूँढकर ले गई और वहाँ उसे इतना | पीटा कि उसे आठ-दस दिन अस्पताल में रहना पड़ा। इससे वह समझ गया कि यहाँ दाल नहीं गलेगी। लौटकर आया क्षमा माँगकर भावनगर ही छोड़कर चला गया। ऐसी एक घटना थी कि आजूबाजू वाले गोपालक विद्यार्थी विद्यालय परिसर में अपने पशु चरने को छोड़ देते थे। इससे बागवानी नहीं हो पाती थी और परेशानी भी रहती थी। मैंने उन्हें बुलाकर समझाया पर वे अपनी अकड़ में रहे। एकदिन उसे बुलाकर कहा 'बता तुझे मार कहाँ खानी है। यहाँ ऑफिस में या पुलिस स्टेशन में या तेरे घर ?" उसे लगाकि यहाँ कुछ नहीं चलेगा। सो दूसरे दिन से ढोरो का आना बंद हो गया। मैं वहाँ १० वर्ष रहा वहाँ कोई व्यवधान नहीं रहा। इन घटनाओं से विद्यार्थी तो सुरक्षित हुए ही पूरा व्यवस्थापक मंडल खुश था कि विद्यालय सुरक्षित हो गया है। मैंने विद्यार्थियों में शिस्त, जैन पाठशाला, पूजा, दर्शन - आरती एवं अध्ययन के प्रति रूचि उत्पन्न करने के खूब प्रयत्न किये और मह्दअंशों में सफल भी हुआ । विद्यार्थियों को नित्य प्रक्षाल और पूजा के
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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