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________________ एसफलता की कहा 149 विभागाध्यक्ष हैं, अतः प्रोफेसर का पद देना कठिन है। हाँ आपको प्रोफेसर का ग्रेड अवश्य दे सकेंगे। पर पद व्याख्याता का होगा।' मैंने भी दृढ़ता से कहा 'सर! आप ग्रेड भले ही व्याख्याता का ही दें, पर पद तो प्रोफेसर का ही देना होगा। डॉ. गप्त विभागाध्यक्ष रहेंगे। डॉ. दवेजी ने मजाकिया स्वर में कहा कि 'आपका कॉलेज बंद हो रहा है आप यह स्वीकार कर लें अन्यथा परेशान होंगे। और आखिर आप क्या करेंगे?' मैंने भी उसी अंदाज में कहा 'देखिए सर! मैं व्यवसायीपुत्र हूँ। आप ऐसा न कहें। मैं यदि शाम तक चार पैंट बुशर्ट के पीस बेच लूँगा तो इस नौकरी से प्राप्त होनेवाली राशि से अधिक कमा लूँगा। इसकी आप चिंता न करें। मैं नौकरी के लिए मजबूर हो सकता हूँ पर स्वमान के भोग से नहीं।' उन्हें मेरी दृढ़ता अच्छी लगी और मुझे प्रोफेसर के रूप में ही विभाग में एक वर्ष की नियुक्ति प्राप्त हुई। __ मैंने उनसे एक शर्त और रखी 'देखें साहब हमारे गिरधरनगर कॉलेज का प्रश्न चल रहा है। उसके लिए मुझे कभी भी जाना पडे तो आप मुझे छुट्टी देंगे। दूसरे मैं धंधुका पी.जी के पीरियड लेने जाता हूँ उसके लिए शनिवार को कॉलेज नहीं आ सकूँगा। हाँ आपके नियमित कुल पीरियड मैं सोम से शुक्रवार में ले लूँगा।' उन्होंने मेरी यह बात भी सहानुभूति पूर्वक स्वीकार की। गिरधरनगर में वेतन तो मिलता नहीं था। अतः उन लोगों ने एक वर्ष की छुट्टी मंजूर कर दी। मैंने भवन्स कॉलेज जोइन कर लिया। भाई डॉ. रामकुमारजी ने पूरी सुविधा से टाईमटेबल दिया। मुझे रहने के लिए एक कमरा भी एक पोल में दिलवा दिया। पूरे वर्ष भोजन की व्यवस्था उन्होंने अपने ही घर कर दी। उनकी पत्नी इस मामले में पूरी अन्नपूर्णा थीं। वे बड़े ही स्नेहभाव से पूरे वर्ष परिवार के सदस्य की तरह नास्ता से लेकर दोनों समय का भोजन कराती रहीं। इस मामले में भाई रामकुमार व भाभीजी का यह भाव मैं आजीवन नहीं भूल पाया हूँ और न भूल सकूँगा। भाभीजी में माँ का वात्सल्य था और रामकुमारजी में बड़े भाई का स्नेह। सन १९७१ इस तरह व्यतीत हुआ। नौकरी की समस्या और गहरी होती जा रही थी। परेशानी थी- सूरत छोड़ने का पश्चाताप था- पर क्या करता। सब कुछ भाग्य और भगवान पर छोड़कर उपायों को खोजता रहा। भावनगर की पृष्ठ भूमि जब मैं १९६५ में राजकोट था उस समय डॉ. मजीठिया जी से अच्छा परिचय व स्नेह बढ़ा था। एक ही कमरे में ५-६ महिने रहे भी थे। अतः उनके मनमें मेरे प्रति सद्भाव था। उनका ट्रान्सफर राजकोट से भावनगर । शामलदास आर्ट्स कॉलेज में विभागाध्यक्ष के रूप में हो चुका था। वहाँ उन्होंने अपना अच्छा प्रभाव जमाया था। । वे स्वयं अध्यापक के अलावा एक प्रतिष्ठित लेखक और अधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित थे। वहाँ के स्थानिक कॉलेजों एवं यनिवर्सिटी में उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। भावनगर में २-३ वर्ष पूर्व ही एक नया आर्ट्स एण्ड कॉमर्स कॉलेज ‘वळिया आर्ट्स एण्ड महेता कॉमर्स कॉलेज' प्रारंभ हुआ था। भावनगर में 'भावनगर केळवणी मंडल संचालित' यही एक प्राईवट कॉलेज था। कॉलेज विद्यानगर शिक्षण संकुल में सरकारी पोलीटेकनिक के सामने ही था। इस नये कॉलेज में विकास की दृष्टि से अन्य स्पेश्यल विषयों के साथ हिन्दी में भी ओनर्स कोर्स खोलने का । प्रस्ताव था। उस समय कॉलेज के आचार्य थे शहर के प्रसिद्ध शिक्षणविद् श्री एन.जे. त्रिवेदी जो एन.जे.टी. के । नाम से प्रसिद्ध थे। वे पहले शामलदास कॉलेज में अंग्रेजी के अध्यापक थे। शहर में अति लोकप्रिय, स्पष्ट वक्ता । और शिस्त के आग्रही थे। वे डॉ. मजीठियाजी के अच्छे मित्र थे। वहीं शहर में श्री जयेन्द्रभाई त्रिवेदी एक विशेष !
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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