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________________ amPSE समायाकलापमान | 137 । और सीधे अपने कक्ष में चले गये। मुझसे बात तक नहीं की। मैं डर गया। क्या नाराज़ हैं। मैं भी बाहर बैठा रहा। । घंटे भर बाद वे बाहर आये और मुझे अपने हाथ से लिखा एपाईन्टमेन्ट लेटर देकर बोले, “जाओ अमरेली पहुँच जावो।" मैं तो भौचक्का रह गया। कोई इन्टरव्यू नहीं। बस वे प्रभावित थे मेरी प्रथम दिन की मुलाकात और मेरी स्पष्टवादिता से। मेरी खुशियों का ठिकाना नहीं था। स्वप्न सच जो हो रहा था। पाँव धरती पर नहीं पड़ रहे थे। मैंने उन्हें प्रणाम किया और आशीर्वाद लेकर घर चला आया। यह समाचार घर पर और मित्रों को सुनाने को मन उमड़ रहा था। जब यह समाचार लोगों को दिया तो उनकी बधाई और आशीर्वाद प्राप्त हुए। अपनी बेच के उत्तीर्ण छात्रों में मैं ही ऐसा था जिसे पूर्णकालीन व्याख्याता का पद प्राप्त हुआ था। __जीवन में पहली बार नौकरी के लिए अहमदाबाद व परिवार से दूर जाना था। एकबार १९५२ में पिताजी की इच्छा से दूर खुरई पढ़ने गया था सो भाग आया था। पर अब तो आजीविका और कैरियर का प्रश्न था। १४ जून १९६३ को अहमदाबाद से दूर सौराष्ट्र के सुदूर अमरेली के लिये प्रयाण किया। इसी ट्रेन में मेरी तरह फिजिक्स, राजनीतिशास्त्र में जिन युवाओं को एपोइन्टमेन्ट मिला था वे भी मेरे साथ थे। दिनांक १५ जून १९६३ को प्रातः अमरेली पहुँचे और सबसे पहले पथिकाश्रम (पंचायत की धर्मशाला) में पहुँचे। कमरा लिया। घर से लाया नास्ता किया और ११ बजे कॉलेज पहुँचे। ___ अमरेली सौराष्ट्र का जिला कक्षा का शहर है। अभी शहर बनने की ओर प्रयाण हो रहा था। श्री प्रतापराय सेठ और श्री कामानी ग्रुप के दान से स्टेशन के पास विशाल भूमि पर 'श्री प्रतापराय आर्ट्स एण्ड कामानी सायंस कॉलेज' का भवन निर्माण हो रहा था। कक्षाओं में आधुनिक कुर्सी की बैठके बनीं थीं। यहाँ आचार्य थे श्री कपिलभाई दवे गणित के जानेमाने विद्वान। अहमदाबाद के ही निवासी। पुराने स्टाफ में अहमदाबाद निवासी श्री जे.के. पटेल राजनीति शास्त्र के अध्यापक थे। अर्थशास्त्र में थे डॉ. वी.एच. जोषी, अंग्रेजी में श्री त्रिवेदी जो ! नागपुर से अध्ययन करके आये थे। इसके उपरांत संस्कृत में मेरे ही अध्यापक श्री शास्त्रीजी जो अहमदाबाद के । थे और मनोविज्ञान में थीं कु. अनंताबेन शुक्ल। हमारे साथ आये व्याख्याताओं में फिजिक्स में श्री शाह, बोटनी में श्री हीराभाई शाह जो स्थानिक म्युज़ियम के क्युरेटर भी थे। और भी अन्य मित्र नये नियुक्त हुए थे। अध्यापकों ने हमें बड़ा ही सहयोग दिया। कॉलेज का समय दोपहर १२ से ४ था। अतः प्रातः लगभग फ्री होते थे। नए-नए एम.ए. हुए थे। पढ़ाई से थके हुए थे, नए व्याख्याता थे। गाँव नया था और गाँव में कॉलेज के व्याख्याता का रोब भी खूब होता था। उसी आनंद को लेते थे। रोज़ शाम कॉलेज से छूटकर सात-आठ मित्र मकान खोजने निकलते और शाम टावर के पास निब्बू सोड़ा पीते और रात्रि में लॉज में खाकर सो जाते। लगभग एक सप्ताह के पश्चात हमें शहर में ही टावर के पास श्री कानाबार वकील साहब के मकान के ऊपर के दो कमरे फर्निचर के साथ मात्र ३१ रू. महिने में प्राप्त हुए। यहाँ भोजन की समस्या थी। मैंने कभी होटल में खाना नहीं खाया था। अतः अहमदाबाद से ही एक पेटीमें रसोई का सारा सामान, मसाले आदि लेकर आया और रोज़ प्राईमस पर खाना पकाता। दाल-भात तो रोज बनाना कठिन था और हमारे लिए दाल-भात किसी लक्ज़री भोजन से कम नहीं थे। रोज़ प्रातः सब्जी रोटी या परोठे बनाता और सबह ही इतना बना लेता कि शाम की झंझट से बच जाता। आवश्यकता पड़ने पर शाम को सब्जी बना लेता। वैसे शाम का भोजन बनाना अनियमित ही था। अधिकांशतः शाम को तो मेरे जैसे स्वयंपाकी मित्र के यहाँ खा लेते थे या फिर लोज़ जिन्दाबाद। लोज़ का चार्ज भी दोनों टाईम भोजन का कुल ३० रू. मासिक होता था। उस समय गुजरात विधानसभा में श्री राघवजीभाई लेऊवा स्पीकर बन चुके थे। उनके छोटेभाई प्रेमजीभाई । NIRMi080PowwwORE 0000000P.
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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