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________________ जैगजाना 851 धर्म का झन्डा फहराया। उनकी ओजपूर्ण वाणी जन-जन को प्रभावित करती है। आप अनेकानेक ज्ञानमयी । संस्थाओं के संस्थापक जनक तुल्य हैं। आपने ऋषभदेव विद्वद् महासंघ के दो बार अध्यक्ष पद पर रहकर अपनी । कुशलता का परिचय दिया। साधु संतो आर्यिका प्रमुख गणिनी ज्ञानमती माताजी के परम भक्त हैं अनेक संस्थाओं व जम्बूद्वीप हस्तिनापुर से दो बार पुरस्कृत मानव हैं। ___ आपका जीवन समुज्जवल रूप से समाज राष्ट्र साहित्य निर्माण में अग्रसर है व अग्रहणी है। ऐसे लोकोपकारी 'मानव शिखर' डॉ. शेखरचंदजी का अभिनन्दन करता हूँ और मंगल कामना करता हूँ कि आपका जीवन ‘याव चन्द्रादिवाकरौं' सम उज्ज्वल हो। और शतशत चिरायु की कामना करता हूँ। ___ सह परिवार। चिरंजीवी रहकर धर्म समाज राष्ट्र के ज्योर्तिमान बनें। मंगल कामना के साथ ___पं. बाबूलाल जैन 'फणीश', शास्त्रि (ऊन) R निर्भीक-कर्मशील-प्रसन्न व्यक्तित्व ___ डॉ. शेखरचंद्र जैन का परिचय जैनदर्शन संबंधित कार्यक्रमों के संदर्भ में होता रहा। प्रखर आत्मविश्वास और कर्मनिष्ठा का पर्याय - अर्थात् शेखरचंद्र जैन। अपने निर्दिष्ट लक्ष्य को सिद्ध करने के लिये अदम्य उत्साह और पुरुषार्थ से लगे रहना – वह उनकी लाक्षणिकता है। वे प्रसन्नता और स्फूर्ति से मंज़िल की ओर आगे बढ़ते रहते हैं। गुजरात विद्यापीठ के अंतर्राष्ट्रीय जैनविद्या अध्ययन केन्द्र में उनके साथ कार्य करने का मौका मिला था। अपनी कार्यसिद्धि और कार्य पद्धति के बारे में वे अपने विचारों में स्पष्ट और सज्ज होते थे। हृदय में सच्चाई होने से कार्य पूर्ण करने के लिये निर्भीकता से आगे कदम उठा सकते थे। _ 'जैन शब्दावली' - जैनदर्शन का पारिभाषिक कोश हम उनके मार्गदर्शन में तैयार कर रहे थे, तब उनकी । विशेष कार्यपद्धति का भी परिचय हुआ। समग्र कार्य का स्वरूप इस तरह आयोजित करते थे कि लक्ष्य को त्वरा से हाँसिल कर सकें। विरोध और अवरोधों से डरना उन्होंने कभी नहीं सीखा। कैसा भी कठिन कार्य हो, निष्ठा और पुरुषार्थ से उसे परिपूर्ण करना - वह उनके स्वभाव की सहज लाक्षणिकता है। आप बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न हैं। जैनदर्शन के तलस्पर्शी और सर्वविध आयामों के प्रखर अभ्यासी और पुरस्कर्ता हैं। आचार-विचार में शुद्ध जैनत्व के आग्रही होने पर भी सांप्रदायिक संकुचितता से परे हैं। चिंतक होने के साथ उपन्यासादि के सर्जक साहित्यकार और 'तीर्थंकर वाणी' जैसे सामायिक के कुशल संपादक भी हैं। समय की आवश्यकता के अनुसार बच्चों और युवावर्ग को भी धर्म और जैनत्व का सत्य संदेश पहुँचाने के लिये अपनी पत्रिकाओं के द्वारा उत्तम और प्रशंसनीय प्रयास कर रहे हैं। उनके व्यक्तित्व में प्रखरता है, साथ में सेवा-सहिष्णुता और करुणा की भावना से भी हृदय छलकता है। ! अतः दुःखी और दरिद्र लोगों की सेवा के लिये भी सदा कार्यरत रहते हैं। डॉ. शेखरचंद्र जैन जिन शक्ति, स्फूर्ति, सूझ, कार्यनिष्ठा, कार्यसिद्धि की तत्परता, प्रसन्नता और सहिष्णुता के गुणों से संपन्न हैं - उनकी सदा वृद्धि हो और सदा सफलता प्राप्त करते रहें - ऐसी ही शुभ प्रार्थना, इस अवसर पर करती हूँ। डॉ. निरंजना वोरा गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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