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________________ ૧૬૪ श्री मृगावतीजी म. की संस्तावना (प्राकृतमा ) D श्री भंवर लाल नाहटा धर कमले । सुकओ । ★ गुणगण मणि सुनिहाणा जणणी जस्स सीलवई अज्जा । वेरग्ग रंग रंजिय किसोर वये चारित ★ जुगवीरो आयरिओ सव्व गच्छ समभाव गहिय सह पवज्जा गुरु वल्लह सूरि कर ★ कलिकाया महाणयरे पज्जोसवण पवयणो सुविहिय संधाराहण कारविय सुकित्ति वित्थारो ॥ ★ जाओ महप्पभावो संविग्ग रंग, पवडूढ़माण पच्चक्खो । कंगड़ कोटुद्धरिओ सुसम्म निव कय नेमि जिण काले ॥ ★ ढिल्लयां वल्लह भुवणं बहु वित्थर आरंभिओ जेण । चण्डीगढ़े मेरुसमो जिणलयो सुह रायहाणीसु ।। ★ जसवंतराय विज्जो कहिय मिणं संथवण कज्जे । गहणत्थ ॥ पवरो । हा! खेय, पंत्त पंचत्त अनिसुणिय गाहा पंचगा एसा || १. गुणों के समूह रूप रत्नों की निधान, आर्या श्री शीलवती जिनकी जननी थीं, ऐसी किशोर वयस्का (मृगावती श्री जी) चारित्र ग्रहण के हेतु वैराग्य रंग में रंजित हो गईं। २. सर्व गच्छों के प्रति समभाव धारण करने वाले, युगवीर आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी गुरु महाराज के कर कमलों से माताजी के साथ ही आपने भगवती प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । ३. कलकत्ता महानगर में जिन्होंने ( गुरु महाराज के आदेश से ) सुविहित खरतर संघ को पर्युषण पर्वाराधन प्रवचनादि देकर कराया, जिससे कीर्ति का विस्तार हुआ । ४. आर्या श्री का संवेग रंग प्रत्यक्ष बढ़ा और महान प्रभावशालिनी हुईं । आपने नेमिनाथ तीर्थं कर के समय में नरेश्वर सुशर्मा के स्थापित किए तीर्थ, नगरकोट कांगड़ा का उद्धार किया । ५. आपने दिल्ली में गुरु महाराज श्री विजय वल्लभ सूरि के स्मृति भवन का भागीरथ कार्य प्रारम्भ किया और पंजाब की राजधानी चण्डीगढ़ में भी शुभ जिनालय मेरु पर्वत की भांति खडा किया । ६. राज वैद्य जसवंत राय जैन ने यह स्तवना करने के लिए निर्देश किया, किन्तु खेद है कि वे इन ५ गाथाओं को सुने बिना ही पंचत्व को प्राप्त हो गए । મહત્તરા શ્રી મૃગાવતીશ્રીજી
SR No.012083
Book TitleMahattara Shree Mrugavatishreeji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah and Others
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1989
Total Pages198
LanguageGujarati, Hindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size5 MB
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