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________________ શ્રીવિજયસેનસૂરિપ્રાસાદિત બે દસ્તાવેજી મૂલ્ય ધરાવતા પત્રો पुण्यप्रभावक श्रीदेवगुरुभक्तिकारक श्रीजिनाज्ञाप्रतिपालक श्रीसम्यक्त्वमूलद्वादशव्रतधारक संघमुख्य सा. सोमा सा. श्रीमल्ल सं. सोमकरण उदयकरण सा नेमिदास वजिया ठा. लाई कुंअरजी प्रमुख संघ योग्यं धर्मलाभपूर्वकं लिखन्ति । यथाकार्यं च 19 अत्र धर्मकार्य सुख प्रवर्तन छड़ श्री देवगुरुप्रसादिं । अपरं तुमारु लेख पुहुतु । समाचार प्रीछ्या । तथा तुमारा धर्मोद्यम करवाना उद्यम सांभली संतोष उपनो । तथा श्री हीरविजयसूरिं प्रसाद कर्या जे बार बोल, ते मध्ये अनुमोदवाना बोलमांहिं - दानरुचिपणुं - १, स्वभाविं विनीतपणुं २, अल्पकषाईपणुं ३, परोपकारीपणुं ४, भव्यपणुं ५, दाक्षिणालूपणुं ६, दयालूपणुं ७, प्रियभाषीपणुं ८, इत्यादिक जे साधारण गुण मिथ्यात्वी संबंधिया तथा जैन परपक्षी संबंधी अनुमोदवायोग्या छड़, आसिरी कोई कोई एहवुं विपरीत अर्थ करता सांभलीई छड़ - जेहनइ असद्ग्रह होइ तेहना ए गुण अनुमोदीड़ नही । जेहनड़ किस्याइ बोलनु असद्ग्रह होइ तेहना ए गुण अनुमोदी नही । पणि ते जूटुं कहड़ छड़ । जे माटिं जे हनई मिथ्यात्व होइ तेहनइ असद्ग्रह अवस्यई होइ । अनइ सास्त्रमाहिं तो मिथ्यात्वरूप असद्ग्रह थिकड़ हुंतड़ पणि गुण अनुमोदवायोग्य कह्या छइ । तो मिथ्यात्वीनुं तथा परपक्षीनुं दयाप्रमुख कस्योइ गुण अनुमोदवायोग्य नहीं एहवुं जे कहड़ तेहनी समी ति किम कहि ।।१।। तथा बार बोल माहिं लख्यं छड़ जे त्रिणिनां अवंदनिक चैत्य विना बीजां सर्व चैत्य वांदवापूजवायोग्य जाणिवा । ते आसिरी पणि केतलाएक विपरीत वचन कहता सांभलीइ छड़, ते पणि रूडुं नथी करता । ते माटि ए बोल आसिरी तथा बीजा बार बोलना बोल आसिरी जे कुणड़ यती तथा श्रावक विपरीत प्ररूपणा करइ तेहनइ आकरी सिखामण देयो । अनइ तुम्हारी सीख न मानइ तु तेहनुं नाम प्रगटपणइ अम्हन जावो । तेहनइ अम्हो सीख देस्युं । पत्र - २ स्वस्ति श्रीवीरजिनं प्रणम्य राजनगरात् श्रीविजयसेनसूरयः सपरिकराः श्रीमति स्तम्भतीर्थे सुश्रावक पुण्यप्रभावक श्रीजिनाज्ञाप्रतिपालक सा. काहान मेघजी योग्यं धर्मलाभपूर्वकं लिखन्ति । यथा कार्यं च - अत्र धर्मकार्य सुखिं निरवहड़ छड़ श्रीदेवगुरुप्रसादिं । अपरं च तुमारो लेख पुहुतु । समाचार प्रीछ्या । तथा तुम्हो धर्मोद्यम विशेषथी करयो । तथा अमारो धर्मलाभ जाणयो । जे वांछड़ तेहनइ जणावयो । अम्हारी वती देव जुहारयो । तथा प्रश्नोत्तर लिखीड़ छइ । महेसरी टाढिने दिहाढे मोक्षनइ अर्थिं महीसागरडूं जाइ छड़, अनई मलेछ टाढि माहिं नमाज करइ छड़ केवल मोक्षनइ अर्थि, ए बिहु तो सकामनिर्जरा कहीड़ के अकामनिर्जरा कहीइ ए प्रश्न आसिरी तत्त्वार्थ प्रमुख शास्त्रनइं अनुसारिं एहवुं जणाइ छड़ जे कोई सम्यग्दृष्टीनी अपेक्षाई मिथ्यादृष्टीनइं थोडी निर्जरा होइ ते प्रीयो । तथा परपक्षीना श्रावक तपागच्छना आचार्यपिं प्रतीष्ठावी देहरइ पूजइ तेहना धणीनई संसार वाधड़
SR No.012079
Book TitleMahavir Jain Vidyalay Shatabdi Mahotsav Granth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages360
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size8 MB
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