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________________ 274 महेन्द्रकुमार मस्त वर्धमानसूरि ने नादौन (हि.प्र.)में ही अपने ग्रंथ 'आचार दिनकरकी रचना १५वीं शताब्दी में की । ' सरकार के पुरातत्त्व विभाग के होशियारपुर के पास ढोलबाहा, नंदनवनपुर (नादौन), पंचपुर (पिंजौर), रोहतक के पास अस्थलबोहर व खरखौदा, नारनौल के पास फिरोजपुर-झिरका, चंडीगढ़ का प्राचीन शिव मंदिर, सामाना (जिला पटियाला), बठिण्डा, कुरुक्षेत्र-थानसेर, जींद व हिसार आदि अनेक स्थानों से जैन मूर्तियाँ व चिह्न प्राप्त किये हैं । सम्राट सम्प्रतिने अपने पिता कुणाल के लिए तक्षशिला (टैक्सिला) में एक जैन स्तूप का निर्माण कराया था जहाँ वर्तमान में पाकिस्तान सरकार ने 'भग्न जैन टैम्पल' का बोर्ड लगा रखा है । दिल्ली के कुतुबमिनार की नीवों की मुरम्मत कराते समय वहाँ से करीब २० जैन मूर्तियाँ मिली थीं । Notable Historical Events मुस्लिम शासन के बहुत थोडे से काल को छोडकर, महमूद गज़नवी से औरंगज़ेब तक के लम्बे समय में ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन, मंदिरों-मूर्तियों का विध्वंस और अन्य हर प्रकार के जुलम चलते रहे । फिर भी, सम्राट अकबर से ताम्रपत्र पर फरमान लेकर आचार्य शीलदेवसूरि ने वि. सं. १६४३ (१५८६ AD) में सामाना में भगवान अनंतनाथ के मंदिर की प्रतिष्ठा कराई । 'श्री अनंतनाथ प्रभु प्रकटेउ, हुकमु साहि अकबरी दीयउ ।।' अकबर के ही कहने पर चौथे दादागुरु श्री जिनचंद्रसूरि तथा आचार्य हीरविजयसूरि दोनों ने एक एक चौमासा लाहौर में किया । तीसरे दादागुरु श्री जिनकुशलसूरिजी की पुण्यस्थली - देराऊर (ज़िला बहावलपुर-पाकिस्तान) में हैं । सामाना तथा थानेसर की प्राचीन दादावाडियाँ अकबर के समय के बाद की हैं। इस पूरे मुगल काल में जैन यतियों (श्रीपूज्यों) ने जैन परिवारों - श्रावकों के आचार, धार्मिक क्रियाओं, परम्पराओं व विधि-विधान की जी जान से रक्षा की । वर्तमान पाकिस्तान के फ्रण्टियर सूबे सहित इस पूरे क्षेत्र में उनका आना-जाना रहता था । शिखर-सहित तथा बिना-शिखरवाले मंदिरों की प्रतिष्ठाएँ उन्होंने कराई । इन यतियों के द्वारा लिपिबद्ध जैन सूत्र, शास्त्र व ग्रंथ आज एक अनमोल निधि व विरासत हैं। पंजाब के हर छोटे-बड़े स्थान पर यतियों के डेरे (उपाश्रय) थे । फगवाड़ा के मेघ मुनि, गुजरांवाला के वसंता ऋषि, पट्टी के यति मनसा चंद विशेष उल्लेखनीय हैं । पूरे जैन क्षेत्र के श्रावकों, यतियों और मुनियों का प्रभाव-क्षेत्र इतना व्यापक रहा कि श्री गुरु नानकदेव द्वारा रचित सीखों के पावन ग्रंथ 'सुखमणि साहिब' में 'जैन मारग संजम अति साधन' - यह गाथा आज भी विद्यमान है । सीखों के दसवें गुरु श्री गोविंदसिंहजी के दो छोटे सुपुत्रों (उमर ९ व ७ साल) को सरहिंद के नवाब वजीर खानने बडी क्रूरता से मौत के घाट उतार दिया तो सामाना में जन्मे ओसवाल गादिया गौत्रीय दीवान टोडरमल जैनने अपनी जान की बाजी लगाकर भी, स्वर्ण मुद्राओं के बदले जमीन प्राप्त करके इन दोनों साहिबजादों और इनकी दादीमाँ का अंतिम संस्कार कराया । पंजाब के पुर जन १
SR No.012079
Book TitleMahavir Jain Vidyalay Shatabdi Mahotsav Granth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages360
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size8 MB
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