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________________ ॥ श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः ॥ ॥ ॐ अहं सद्गुरुभ्यो नमः ॥ जैन दार्शनिक साहित्य और प्रमाणविनिश्चय लेखक : पृ0 मुनिराज श्री जम्बूविजयजी महाराज. [पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय मेरे अनन्त उपकारी गुरुदेव श्री १००८ मुनिराज श्री भुवनविजयजी महाराज साहेब की कृपा से एवं माननीय विद्वद्वर्य डॉ. वासुदेव विश्वनाथ गोखले इन को शुभ प्रेरणा से आज से बारा वर्ष पूर्व जब मै में तिब्बती भाषा का अध्ययन किया तब मुझे भारतीय दार्शनिक साहित्य के अध्ययन में तिब्बती भाषा ज्ञान की अत्यंत उपयोगिता का परिचय मिला. ] ___ दार्शनिक साहित्य के अभ्यासी इस वस्तुस्थिति से सुपरिचित हैं कि दार्शनिक साहित्य के प्रन्थों में अन्य ग्रन्थो में से बहुत अवतरण उध्धृत किये हुए होते हैं; क्यों कि दार्शनिक साहित्य का उद्देश स्व-परमत मंडन-खंडन करने का होने से उस में अन्यान्य मतों के उल्लेख बडे विस्तार के साथ मिलता है. यदि उन उन मतांतरों के मूल स्थान ढूंढ निकाले जाय तो अति कठिन मालूम पडता दार्शनिक साहित्य बहुत अंश में सुगम विशद और विशुद्ध हो जाता है. दार्शनिक साहित्य के विद्वानों को यह भी सुविदित है कि बौद्धाचार्य धर्मकीर्ति के सेंकडो वाक्य दार्शनिक ग्रन्थो में उध्धृत किये हुए हैं, धर्मकीर्ति के बाद का शायद ही कोई ऐसा प्राचीन भारतीय दार्शनिक साहित्य का ग्रन्थ होगा कि जिस में धर्मकीर्ति का एकाध भी वाक्य उध्धृत किया हुआ न हो. क्यों कि बौद्धाचार्य धर्मकीर्ति का बौद्ध दार्शनिक परम्परा में अति महत्त्व का स्थान है. बौद्ध आचार्य दिङ्नाग कि जो मध्यकालीन बौद्ध तर्कशास्त्र का पिता ( Father of the midimal Buddhist Logic ) कहा जाता है उस के सिद्धान्तों को पल्लवित करने का एवं वेग देने का कार्य यदि किसी ने पूरे जोर से किया हो तो धर्मकीर्ति ने किया है. ऐसा कह सकते हैं कि दिङ्नाग ने बीज बोया और धर्मकीर्ति ने उस में से वटवृक्ष विकसित किया है. चीनी यात्री इत्सिंग मे भारतवर्ष में प्रवास करने के बाद चीनी भाषा में लगभग इस्वीसन् ६९१ में जो वृत्तान्त लिखा है उस में उस ने धर्मकीर्ति की खूब प्रशंने की है. इस से और अन्य आधार से सन् ६५० से ६८५ तक में धर्मकीर्ति का उदयकाल मानना मुझे ठीक लगता है. धर्मकीर्ति ने तर्कशास्त्र के विषय में निम्नलिखित सात महत्त्वपूर्ण संस्कृत ग्रन्थों की रचना For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012077
Book TitleMohanlalji Arddhshatabdi Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMrugendramuni
PublisherMohanlalji Arddhashtabdi Smarak Granth Prakashan Samiti
Publication Year1964
Total Pages366
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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