SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ શ્રી મોહનલાલજી અર્ધશતાબ્દી ગ્રંથ अवगुंठन के अर्थ में णीरंगी ५/३१ शब्द आया है । इन शब्दों से अवगत होता है कि केश विन्यास के विविध प्रकार उस समय वर्तमान थे। ___ आचार्य हेम ने आषाढ़ मास में गौरी पूजा के निमित्त होनेवाले उत्सव विशेष का नाम भाडअं ६/१०३, श्रावण मास में शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को होनेवाला उत्सव विशेष के लिए वोरल्ली ७/८१, भाद्रपद मास में शुक्लपक्ष की दशमी को होनेवाले उत्सव के लिए णेडरिआ ४/४५, आश्विन कृष्णपक्ष में सम्पन्न होनेवाला श्राद्धपक्ष के लिए महालवक्खा ६/१२७, आश्विन मास में शरत्पूर्णिमा जैसे महोत्सव के लिये पोअलओ ६/८१, इस उत्सव में पति अपनी पत्नी के हाथ से पुओं का भोजन करता था। माघ महीने में एक प्रकार का ऐसा उत्सव सम्पन्न किया जाता था जिस में ऊख की दतउन की जाती थी इस उत्सव के लिए अवयारो १/३२, वसन्तोत्सव के लिए फग्गू ६/९२ एवं नवदम्पति परस्पर में एक दूसरे का नाम लेते थे, उस समय जो उत्सव सम्पन्न किया जाता था, उस के लिये लयं ७/१६ शब्द का प्रयोग किया है । इन उत्सव वाची शब्दों को देखने से ज्ञात होता है कि हेम ने इस कोश में अपने समय में प्रचलित समस्त उत्सव परम्पराओं के वाचक शब्दों का संकलन किया है। ___ इस कोश में कतिपय शब्द इस प्रकार के भी संकलित है, जिन से उस काल की रीतिरिवाजों पर पूर्ण प्रकाश पड़ता है । एक शब्द एमिणिआ १/१४५ आया है यह शब्द उस स्त्री का वाचक है जो अपने शरीर को सूत से नापकर उस सूत को चारों दिशाओं में फेंकती है, इसी प्रकार आणंदवडो १/७२ शब्द आया है, इस का अर्थ है कि जिस का विवाह कुमारी अवस्था में हो जाय वह स्त्री जब प्रथमवार रजस्वला हो, उस के रजलिप्त वस्त्र को देखकर पति या पति के अन्य कुटुम्बीओ आनन्द प्राप्त करते है, वह आनन्द इस शब्द के द्वारा व्यक्त किया गया है। इसमें कुछ खेल के वाची शब्द भी संकलित हैं । इन शब्दों से उस काल के मनोरंजन के साधनों पर सुन्दर प्रकाश पड़ता है । यहाँ उदाहरण के लिये दो-एक खेल को ही लिया जाता है । जो खेल आखों को थका देनेवाला या आखों को अतिप्रिय होता था, उस के लिए गंदीणी २/८३ शब्द आया है । लुका-छिपी खेल के लिए आतुंकी १/१५३ शब्द प्रयुक्त हुआ है । यहाँ कुछ ऐसे शब्द दिये जाते हैं, जो रीतिरिवाजों पर प्रकाश डालते हैं अझोल्लिआ क्रोडाभरणे मौक्तिकरचना १/३३ गले के हार में अथवा वक्षःस्थल के आभूषण में मोतियों का लगाना । अद्धजंघा मोचकम् पादत्राणं १/३३–एक प्रकार का जूता, जो आजकल के चप्पल के समान होता था। अंबोच्ची पुष्पलावी १/९-पुष्प चयन करनेवाली मालिन । ___ अवअच्छं कक्षावस्त्रम् १/३६–कटि पर पहना जानेवाला वस्त्र, पुरुषों के लिए धोती, लियों के लिए घग्घर-घांघरा था । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012077
Book TitleMohanlalji Arddhshatabdi Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMrugendramuni
PublisherMohanlalji Arddhashtabdi Smarak Granth Prakashan Samiti
Publication Year1964
Total Pages366
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy