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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रंथ अर्थात् ब्राह्मी सुंदरी दोनों कन्याओं ने प्रभु आदिनाथ के समवशरण में आर्यिका दीक्षा धारण की थी और ब्राह्मी आर्थिका समस्त आर्यिकाओं में गणिनी स्वामिनी थीं। इस युग की प्रथम आर्यिका ने भगवान् के समवशरण में दीक्षा ली थी। उसके पश्चात् महिलाओं के लिए गणिनी से दीक्षा प्राप्त करने के अनेकों उदाहरण देखे जाते हैं—आदिपुराण द्वितीय भाग में पृ. ५०३ पर आया है "भरत के सेनापति जयकुमार की दीक्षा के बाद सुलोचना ने भी ब्राह्मी आर्यिका के पास दीक्षा धारण कर ली।" अन्यत्र हरिवंश पुराण में भी कहा है - "दुष्ट संसार के स्वभाव को जानने वाली सुलोचना ने अपनी सपत्नियों के साथ श्वेत साड़ी धारण कर ब्राह्मी तथा सुंदरी के पास दीक्षा धारण कर ली। इसके साथ हरिवंश पुराण में आर्यिका सुलोचना को ग्यारह अंग की धारिणी भी माना है। कुबेरमित्र की स्त्री धनवती ने संघ की स्वामिनी आर्यिका अमितमति के पास दीक्षा धारण कर ली और उन यशस्वती तथा गुणवती आर्यिकाओं की माता कुबेर सेना ने भी अपनी पुत्री के समीप दीक्षा ले ली। पद्मपुराण में भी वर्णन आता है " रावण के मरने के बाद मंदोदरी ने शशिकांता आर्यिका के मनोहारी वचनों से प्रबोध को प्राप्त हो उत्कृष्ट संवेग और उत्तम गुणों को प्राप्त हुई गृहस्थ की वेशभूषा को छोड़कर श्वेत साड़ी से आवृत हुई आर्यिका हो गई। उस समय अड़तालीस हजार स्त्रियों ने संयम धारण किया था, इन्हीं में रावण की बहन जो कि खरदूषण की पत्नी थी, उस चन्द्रनखा (सूर्पणखा) ने भी दीक्षा ले ली थी । माता कैकेयी भरत की दीक्षा के बाद विरक्त एक सफेद साड़ी से युक्त होकर तीन सौ त्रियों के साथ "पृथ्वीमती" आर्यिका के पास दीक्षित हो गई थीं। अग्नि परीक्षा के पश्चात् रामचंद्र ने सीता से घर चलने को कहा, तब सीता ने कहा कि अब मैं "जैनेश्वरी दीक्षा धारण करूँगी" वहीं केशलोंच करके पुनः शीघ्र जाकर पृथ्वीमती आर्यिका के पास दीक्षित हो गई। उनके बारे में लिखा है कि सीताजी वस्त्र मात्र परिग्रह धारिणी महाव्रतों से पवित्र अंग वाली महासंवेग को प्राप्त थीं। इसी प्रकार से पद्मपुराण में श्री रविषेणाचार्य कहते हैं हनुमान की दीक्षा के पश्चात् उसी समय शील रूपी आभूषणों को धारण करने वाली राजस्त्रियों ने "बंधुमती" आर्थिका के पास दीक्षा ले ली। श्री रामचंद्र के मुनि बनने के बाद सत्ताईस हजार प्रमुख स्त्रियाँ "श्रीमती" नामक आर्यिका के पास आर्यिका हुई। हरिवंश पुराण में राजुल के विषय में बताया है ६८.१ षट्सहस्त्रनृपस्त्रीभिः सह राजीमती सदा प्रव्रज्याग्रेसरी जाता सार्यिकाणां गणस्य तु ॥ १४६ ॥ छह हजार रानियों के साथ राजीमती ने भगवान् नेमिनाथ के समवशरण में आर्यिका दीक्षा लेकर आर्यिकाओं में प्रधान गणिनी हो गई। हरिवंशपुराण में ही आगे Jain Educationa International राजा चेटक की पुत्री चंदना कुमारी, एक स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान महावीर के समवशरण में आर्यिकाओं में प्रमुख हो गईं। राजा श्रेणिक की मृत्यु के पश्चात् रानी चेलना गणिनी आर्यिका चंदना के पास दीक्षित हो गईं, जो कि चंदना की बड़ी बहन थीं। ऐसा उत्तरपुराण में कथन आया है तथा गुणरूपी आभूषण को धारण करने वाली कुन्ती, सुभद्रा तथा द्रौपदी ने भी राजमती गणिनी के पास उत्कृष्ट दीक्षा ले ली थी। और भी पुराणों में कितने ही उदाहरण है, जिनसे स्पष्ट होता है कि एक प्रमुख गणिनी आर्यिका समवशरण में तीर्थंकर की साक्षीपूर्वक दीक्षित होकर अन्य आर्यिकाओं को दीक्षा प्रदान करती थीं । आज भी गणिनी आर्यिकाओं के द्वारा आर्यिका क्षुल्लिका की दीक्षाएं प्रदान की जाती हैं, यह प्रसन्नता की बात है। इसी श्रृंखला में वर्तमान की सर्वाधिक प्राचीन दीक्षित परमपूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के कर कमलों द्वारा मुझे भी आर्यिका चंदनामती बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वर्तमान युग में आचार्य और गणिनी दोनों के द्वारा महिलाओं की आर्यिका क्षुल्लिका दीक्षा परंपरा चल रही है। अतः स्वेच्छा से वैराग्यशालिनी महिला जिनके श्रीचरणों में दीक्षा की याचना करती है, वे जिम्मेदारी पूर्वक दीक्षा देकर अनुग्रह आदि करते हुए उसे नवजीवन में प्रवेश कराते हैं। दीक्षा दिवस से पूर्व तक उसे श्राविका के समस्त कर्त्तव्य पालन करने होते हैं। जैसे- जिनेन्द्र पूजा विधान, उत्तम आदि पात्रों को शक्ति अनुसार चतुर्विध दान देकर अपने मन को पवित्र बनाती हैं। 1 दीक्षा का दृश्य अपने आप में एक रोमांचक दृश्य होता है आपकी पुत्री का विवाह अपने घर के छोटे से मंडप में हो जाता है और दीक्षा का महान् कार्य विशाल मंडप में सम्पन्न होता है, जहाँ एक परिवार को छोड़कर "वसुधैव कुटुम्बकम्" अर्थात् सारे संसार को अपना कुटुम्ब समझा जाता है। परन्तु वास्तविकता तो यह है कि न एक परिवार अपना है और न ही समस्त संसार अपना हो सकता है, अपना तो केवल आत्मा है, उसे पाने के लिए ही For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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