SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 717
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [६५१ एस.डी.एम. सुरेन्द्र बहादुर सिंह ने आ ज्योति सम्मान किया। हस्तिनापुरी के कारण इस तहसील ने भी खुब नाम लिया ॥ ८८ ॥ हस्तिनापुरी की वसुंधरा ज्योती स्वागत को आतुर है। अपनी ज्योती के अवलोकन को उसका कण-कण व्याकुल है। नजदीक कुएं के आने पर ज्यों पथिक प्यास बढ़ जाती है। यूं ही नगरी की इच्छा शक्ती और प्रबल हो जाती है। ८९ ॥ हस्तिनापुरी से पहले ज्ञानज्योति बहसूमा क्षेत्र गई। चन्द्रप्रभ की प्राचीन मूर्ति से अतिशयकारी भूमि हुई ॥ अग्रवाल दिगम्बर जैन के छह परिवार यहाँ पर रहते हैं। धार्मिक सामाजिक कार्यों में वे ही अग्रेसर रहते हैं ॥ ९० ॥ आखिर वे इन्तजार घड़ियाँ अब पूरक बनकर प्रकट हुई। माँ ज्ञानमतीजी ज्ञानज्योति को देख बहुत संतुष्ट हुईं। मानो अपनी बिछुड़ी कन्या से तीन वर्ष पश्चात् मिलीं। निर्विघ्नं भ्रमण की कथा सुनाती ज्योती को निज मात मिली ॥ ९१ ॥ हस्तिनापुरी की भूमि आज संगम का दृश्य दिखाती है। श्री आदिनाथ औ शान्तिनाथ युग का संदर्श कराती है। मंदिर परिसर से लेकर सेंट्रल टाउन तक सब सजी गली। दुल्हन की अगवानी करने मानो सजधज बारात चली ॥ ९२ ॥ आचार्य धर्मसागरजी के संघस्थ साधु भी शामिल थे। कुछ अन्य साधु संघों के भी आगमन हुए उस ही दिन थे। खुशियों के थे अम्बार लगे माँ ज्ञानमती के उपवन में। भारत के कोने कोने से उमड़ा था जनसागर इसमें ॥ ९३ ॥ पी.वी. नरसिंहराव केन्द्र के रक्षामंत्री ने आकर। वह पावन ज्योति जलाई इन्द्राजी की गजपुर में लाकर ॥ श्री जे.के. जैन के संग ज्ञानमति माता का आशीष लिया। सम्प्रति प्रधानमंत्री बनकर भारत का ऊँचा शीश किया॥ ९४ ॥ वह ज्योति हस्तिनापुर की एक धरोहर है अनमोल कृती। मेरु पर्वत के ठीक सामने जलती है विद्युत ज्योती॥ कोड़ाकोड़ी वर्षों पहले का स्वप्न यहाँ साकार हुआ। माँ ज्ञानमती की दृढ़ता से संघर्षों का संहार हुआ॥ ९५ ॥ युग युग तक जम्बूद्वीप कृती अपना इतिहास बताएगी। यह ज्ञानज्योति माँ ज्ञानमती की कीर्ति अखंडित गाएगी। नारी की नारायणी शक्ति जग को संदेश सुनाएगी। . कलियुग की यह ब्राह्मी माता सबको उपदेश सुनाएगी॥ ९६ ॥ इस यात्रा की उपलब्धि यही जग जम्बूद्वीप को जान सका। हस्तिनापुरी में जम्बूद्वीप निर्माण हुआ पहचान सका ॥ सबसे सुन्दर उपलब्धि अहिंसा का जग में संचार हुआ। भगवान वीर के शासन का कलियुग में खूब प्रचार हुआ॥ ९७ ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy