SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 669
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [६०३ धर्माधिकारि वीरेन्द्र हेगड़े ने स्वागत सत्कार किया। फिर केरल के परदूर और कलपट्टा में प्रस्थान हुआ ॥ ३९ ॥ जिलाधीश विश्वनाथन ने ज्योतीरथ को माला पहनाई। कलपट्टा में बहुतेक व्यक्तियों ने पुष्पांजलि बिखराई॥ मैसूर जिले में सालिग्राम श्रीरंगपट्टन का क्रम आया। चामराजनगर में एस.ए. धरणेन्द्रैया ने रथ चलवाया ॥ ४० ॥ इसवी सन् चौरासी बारह जनवरी दिवस पावन आया। जब कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में ज्योतीरथ आया ॥ अपने प्रभु बाहुबली चरणों की रज मस्तक पर चढ़ा लिया। माँ ज्ञानमतीजी का हार्दिक संदेश प्रभू को सुना दिया ॥ ४१ ॥ प्रान्तीय प्रवर्तन समिती के आयोजक सभी पधारे थे। केन्द्रीय समिति अध्यक्ष महामंत्री आदी भी आए थे। स्वस्ति श्री चारुकीर्ति स्वामी बोले यह ज्योति हमारी है। हस्तिनापुरी की रचना में हम सबकी सम्मति भारी है॥ ४२ ॥ नगरी में ऐसी धूम मची क्या ज्ञानमती अम्मा आई। हर्षाश्रू बरस पड़े सबके नयनों ने खुशियां छलकाई ॥ प्रभु बाहुबली भी विध्यगिरी से अपनी ज्योती देख रहे। निज मन्द मन्द मुस्कानों से मंगलआशीष बिखेर रहे ॥ ४३ ॥ इस रोमांचक क्षण का वर्णन नहिं मेरी लेखनी लिख सकती। लिखते क्षण भी वह मिलन सोच मेरी दोनों आंखें छलकीं ॥ संयोग वियोगों के प्रसंग सबको रोमांचित करते हैं। इस चिरस्थाई अवसर पर सब ज्योती का स्वागत करते हैं ॥ ४४ ॥ सबकी अँखियाँ यह कहती थीं यह ज्योति यहीं पर रह जावे। प्रभु बाहुबली के चरणों में ही रचना इसकी बन जावे॥ पर अब तो ज्योति सभी नगरों में अपनी ज्योति जलाएगी। हस्तिनापुरी में जम्बुद्वीप दर्शन को तुम्हें बुलाएगी ॥ ४५ ॥ दडगा, मंडया व कुनीगल से टुमकूर शहर में रथ आया। लक्ष्मी नरसिम्या एम.एल.ए. ने नगर प्रवर्तन करवाया । श्री वी. रष्णा डिप्टी स्वीकर ने माल्यार्पण आरति कर ली। ध्वज तोरण बैंड धुनों से युत शोभायात्राएं भी निकलीं ॥ ४६ ॥ पंद्रह जनवरी को बेंगलौर में ज्योति का आगमन हुआ। एम.सी. अनन्तराजैया के द्वारा रथ का परिभ्रमण हुआ। श्री श्रवणबेलगुल तीरथ से भट्टारक चारुकीर्ति स्वामी। बेंगलोर प्रवर्तन में अपना सानिध्य दिया अरु गुरूवाणी ॥ ४७ ॥ थे मुख्य अतिथि मेयर साहब, बेंगलोर की स्वागत यात्रा में। निर्मल सेठी केन्द्रीय समिति अध्यक्ष भी थे उस यात्रा में। मोतीचंदजी ने बतलाया अब चरणसमापन का आया। कर्नाटक के पश्चात् तमिलनाडू वालों ने बुलवाया ॥ ४८ ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy