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________________ ५८०] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ ज्ञानज्योति की बंगाल यात्रा २८ जनवरी, १९८३ को बंगाल के आसनसोल नगर से ज्ञानज्योति की बंगाल यात्रा प्रारंभ हुई, जो २८ फरवरी तक एक माह में सम्पन्न हुई। इस यात्रा के दौरान कतिपय स्थानों की स्वागत झलकियां प्रस्तुत हैं "बंगला देश कथा इतिहासों में पाई जाती है। ज्ञानज्योति स्वागत यात्रा भी उसमें जुड़ जाती है।" रानीगंज में ज्योति पदार्पण३० जनवरी को ज्ञानज्योति का मंगल पदार्पण रानीगंज में हुआ। यह बंगाल यात्रा वाणीभूषण पं. बाबूलालजी जमादार के संचालन में प्रारंभ हुई तथा श्री धर्मचंदजी मोदी ब्यावर वालों ने भी अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया। यहाँ पर एक स्वागत सभा का आयोजन हुआ, जिसमें स्थानीय नगरपालिका के उपाध्यक्ष “श्री शम्भूनाथ मण्डल" ने बंगला भाषा में अपने उद्गार व्यक्त किए। पं. बाबूलालजी एवं मोदीजी के ओजस्वी भाषण हुए। जिनके द्वारा जनता को जम्बूद्वीप और ज्ञानज्योति के बारे में विशद् ज्ञान प्राप्त हुआ। समस्त जैन-अजैन जनता ने उस बिजली फौव्वारों से युक्त जम्बूद्वीप मॉडल का दर्शन किया तथा श्रद्धा भक्तिपूर्वक मंगल आरती उतारकर ज्योतिरथ का स्वागत किया। बैंड, बाजों एवं संगीत की धुनों में ज्योतिरथ का जुलूस पूरे नगर में निकला, जो सभी के आकर्षण का केन्द्र था। रानीगंज के अतिरिक्त कलकत्ता तथा आस-पास के गाँवों के व्यक्ति भी इस कार्यक्रम में पधारे। पुरलिया में भी ज्योति जलीपश्चिम बंगाल के इतिहास में प्रथम बार इन छोटे-छोटे गांवों में इस प्रकार के मंगल आयोजन संजोए गए थे। इसी श्रृंखला में ३१ जनवरी को पुरलिया में भी ज्योतिरथ का पदार्पण हुआ। __ वहाँ श्री रवीन्द्र भवन में सार्वजनिक सभा का आयोजन हुआ, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में वहाँ के एस.पी. श्री अग्रवाल साहब पधारे। सभा में पं. बाबूलाल जमादारजी का सारगर्भित वक्तव्य सभी ने सुना। वैसे बंगाल की अजैन जनता प्रायः मांसाहारी है, अतः अहिंसा धर्म पर वहाँ विशेष रूप से भाषण होते थे। जिससे प्रभावित होकर प्रत्येक नगर में सैकड़ों नर-नारी मांसाहार का त्याग करते थे। पुरलिया में भी पंडितजी के भाषण सुनने के बाद कितने ही स्त्री-पुरुषों ने आजन्म और कई, लोगों ने कुछ समय तक के लिए मांसाहार और मद्यपान का त्याग किया। मैं समझती हूँ कि वास्तविक ज्योति तो उन्हीं के हृदय में जली थी, जो बेचारे अब तक धर्मज्ञान से शून्य एवं भक्ष्याभक्ष्य के विवेक से रहित थे। इस त्यागमय दृश्य से एस.पी. महोदय बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने अपने ओजस्वी वक्तव्य में जैनधर्म को प्राणिमात्र का कल्याणकारी धर्म बताया तथा अहिंसा के बल पर ही हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, इस बात पर बल दिया। यहाँ पर शोभायात्रा का दृश्य भी बड़ा प्रभावक रहा। हजारों नर-नारियों ने ज्ञानज्योति का दर्शन कर धर्म लाभ प्राप्त किया। जुलूस का समापन स्टेडियम पर हुआ। खड़गपुर में ज्ञान का खड्ग लेकर आई ज्ञानज्योतिज्ञानरूपी खड्ग-तलवार से ही अज्ञानरूपी शत्रुओं को पराजित किया है अनन्त महापुरुषों ने। उन्हीं का संदेश प्रसारित करने हेतु श्री ज्ञानमती माताजी ने ज्ञानज्योति का प्रवर्तन प्रारंभ किया था। अतः खड्गपुर में २ फरवरी, १९८३ को जो ज्ञान का प्रचार हुआ, वह वचनों के द्वारा अकथनीय है। मात्र सभा आयोजित कर लेने या शोभायात्रा निकाल लेने में ही बंगाल की जनता तृप्त नहीं थी, बल्कि वह ज्ञान का अमृत पीने हेतु लालायित हो उठी थी। अपने पिछले गाँवों में ज्योति का महत्त्वपूर्ण स्वागत और प्रचार सुन-सुनकर अगले गाँव की ज्ञानपिपासा और भी अधिक बढ़ जाती थी। पहा की शोभायात्रा में भारी उत्साह था। अनेक स्थानों पर ज्योतिरथ की आरती उतारी गई, रात्रि में विशाल जनसभा हुई, जिसमें वक्ताओं के ओजस्वी भाषण हुए। कोलाघाट३ फरवरी को ज्ञानज्योति कोलाघाट पहुँची। यहाँ ज्योति आगमन से लोगों में विशेष उत्साहपूर्ण वातावरण का निर्माण हो गया था। सभी नर-नारी ज्योति के स्वागत हेतु प्रातःकाल से ही तत्पर थे। उनके चिरपिपासु नेत्रों ने उस ज्ञानज्योति के दर्शन कर नेत्रों को धन्य-धन्य माना और तभी उनके मुख से निलल पड़ा, भक्ति का स्रोत उमड़ पड़ा Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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