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________________ ५७०] गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ द्वारा सम्यक्त्व रूप में परिवर्तित होने वाला है; क्योंकि वहाँ पर भी करणानुयोग के मर्म को प्रकाशित करने वाली आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी विराजमान थीं (जो आ. श्री शांतिसागर महाराज के द्वितीय पट्टाधीश आचार्यश्री शिवसागर महाराज की शिष्या हैं)। आर्यिकाश्री के पावन सानिध्य में १९ दिसम्बर को मध्याह्न- १.०० बजे से ज्योति स्वागत सभा का आयोजन जैन समाज ने किया। श्री बाबूलालजी जमादार की ओजस्वी वाणी तो रोते हुए प्राणियों को भी हँसाती थी तथा हँसते दिलों को भी एक बार गंभीरतापूर्वक चिन्तन को मजबूर करने वाली थी। इसीलिए आज का प्रबुद्ध वर्ग पंडितजी के ओजस्वी वक्तव्यों को अब भी भुला नहीं पाता है। जमादारजी ने ज्ञानमती माताजी की ज्ञानप्रतिभा का जो वर्णन उस सभा में किया, उससे प्रत्येक नारी का हृदय बलात् ही ज्ञानमती सदृश बनने को आतुर हो उठा। ब्र. मोतीचंदजी ने ज्ञानज्योति का प्रारूप अपने भाषण में बताया। श्री धर्मचंदजी मोदी-ब्यावर, शांतिलालजी बड़जात्या-अजमेर, पं. फतेहसागरजी-उदयपुर आदि कई वक्ताओं ने अपने वक्तव्यों द्वारा ज्ञानज्योति के प्रति अप्रतिम सम्मान व्यक्त किया। आर्यिकाश्री के हृदयोद्गारश्री विशुद्धमती माताजी ने अपने मंगल प्रवचन में जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा-जंबूद्वीप का अध्ययन यदि ठीक प्रकार से कर लिया जावे तो चारों अनुयोगों का अध्ययन हो जाता है। जो लोग जम्बूद्वीप को स्वीकार नहीं करते हैं, वे चारों अनुयोगों एवं समस्त आचार्यों की अवहेलना करते हैं। जो लोग जम्बूद्वीप में रहकर ही जम्बूद्वीप का विरोध करते हैं, उन्हें ऐसा समझना चाहिए कि वे अपना ही स्वयं विरोध करते हैं। आर्यिका जी ने परमपूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के इस देशव्यापी कार्यक्रम की बहुत सराहना की तथा ज्योतिप्रवर्तन समिति को अपना आशीर्वाद प्रदान किया। [नोट-उन दिनों एक जैन अखबार में पं. कैलाशचंद सिद्धान्त शास्त्री ने जम्बूद्वीप के विरोध में एक लेख प्रकाशित किया था। पता नहीं क्यों? बेचारे कोंदयवश तत्त्वार्थसूत्र की तृतीय अध्याय का निषेध करते हुए भी संकोच नहीं कर रहे थे। उन्होंने लिखा था कि नंदीश्वरद्वीप और जम्बूद्वीप में उतना ही अन्तर है, जैसे कि सम्मेदशिखर का पर्वत और एक साधारण गाँव । जम्बूद्वीप पूज्य नहीं है, नंदीश्वर द्वीप पूज्य है। पक्ष दुराग्रह में वे यह भी भूल गए कि जम्बूद्वीप में ७८ अकृत्रिम मंदिर हैं तथा नंदीश्वर में ५२ ही हैं। मोक्ष की परंपरा जम्बूद्वीप में ही रहती है, जबकि नंदीश्वरद्वीप में तो मनुष्य जा ही नहीं सकते हैं। उनके लेख को पढ़ने से ही पूज्य आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी ने आगम के परिप्रेक्ष्य में उपर्युक्त प्रवचन किया था। हालांकि कुछ दिनों बाद वे पंडितजी स्वयं हस्तिनापुर आकर जम्बूद्वीप स्थल पर पधारे थे। पूज्य आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी से उनकी सौहार्दपूर्ण वार्ता भी हुई, माताजी ने उन्हें कम से कम ६ माह तक साधुओं का विरोध न करने का नियम भी दिया। परिणामस्वरूप उसके पश्चात् पंडितजी ने पुनः छः महीने तक किसी भी साधु के प्रति विरोधात्मक लेखनी नहीं चलाई। उन्होंने बड़ी रुचि से जम्बूद्वीप रचना का अवलोकन किया और बड़े प्रसन्न हुए। विरोध का कारण पूछने पर पंडितजी कुछ शर्मिन्दा हो गए तथा अपनी गलती महसूस की। उदयपुर में इस स्वागत सभा के पश्चात् विशाल मनोहारी जुलूस निकाला गया। जिसमें अनेक प्रकार के बैंड, हाथी, घोड़े, बग्घियों पर सुसज्जित स्त्री-पुरुष जुलूस के आकर्षण को बढ़ा रहे थे। जगह-जगह लगे हुए ठण्डाई एवं शरबत के प्याऊ जनमानस की प्यास बुझाकर स्वागत कर रहे थे। जादू रो खेल (गणनौर) चलो हस्तिनापुर राज्य, सभी मिल चलो हस्तिनापुर राज्य है, श्री ज्ञानमती जी रचवायो जम्बूद्वीप . . . . . सभी अद्भुत दुनियां रचाई खोई जूनी निधि पाई देखो-देखो अतीत ने आज, जी आयो उमड़-घुमड़ के समाज . . . . . सभी दर्शन पूजन कराला जीताजी यूँ तराला हरसी मुनिगण जीवन रो क्लेश, है जो सुणश्यां शास्त्रा रा सद् उपदेश . . . . .सभी वैभव भारत रो देखो अपणा गौरव रो लेखो ज्ञान भक्ति कला रो भण्डार, है जी ऊँची संस्कृति रो प्रचार . . . . . सभी आखो विश्व चकरावे म्हाको पार न पावे प्रकृति प्रभु माया, ब्रह्मरो मेल है जी देखा समझा जादू रो खेल . . . . . सभी For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa international
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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