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________________ ३६] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला Kल परिषत्र व विधा ऋणिपाल सिंह यादव सदस्य विधान परिषद सदस्य खनऊ दिनांक: १.६.02 उतर प्रडे विनयांजलि भारतीय शास्त्र ३३ कोटि देव एवं देवियों का आख्यान ज्ञापित करते हैं। इस देव भूमि पर देवता और देवी कभी-कभी शरीर धारण करने का लोभ संवरण नहीं कर पाते अथवा यों कहिये कि अपनी सन्तानों के दैहिक-दैविक और भौतिक तापों के दर्द को कम करने और उनको सन्मार्ग दिखाने के लिये वह बार-बार अवतार धारण करते है और जन-जन का कल्याण करते हैं और भारत की प्राचीन पद्धति में आस्था की पुनर्स्थापना अवतार देव के स्थान पर देवी का हो तो समस्त स्थावर-जंगम विश्व ही ममता और करुणा की प्रतिमूर्ति हो जाता है। परम पूजनीय सिद्धान्त वाचस्पति, न्यायप्रभाकर गणिनी, आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी करुणा, ममता, सत्य, अहिंसा एवं ब्रह्मचर्य की जीवन्त प्रतिमूर्ति हैं, जो संत्रस्त मानव के कल्याण हेतु इस देव भूमि भारत में अवतरित हुयी हैं। यह संत्रस्त एवं प्रमित मानव आपकी करुणा के कण के मात्र एक अणु का आकांक्षी है। यह विनय स्वीकार कर इस जन को कृतार्थ करेंगी। जय जिनेन्द्र। जय मां ज्ञानमती ॥ [ऋषिपाल सिंह यादव] HIGH CO CAA OF DELHI GOKAL CHAND MITAL CHIEF JUSTICE New Delhi सन्देश पावन प्रेरिका पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के सम्मान में अभिनन्दन ग्रंथ के प्रकाशन पर मुझे प्रसन्नता है। आधुनिक युग में ऐसे पूज्य व्यक्तित्व समाज के लिये अत्यन्त गौरव एवं सम्मान के पात्र हैं। ऐसे व्यक्तित्व ही समाज के सभी वर्गों के लिये ज्ञान एवं प्रेरणा के स्रोत होते हैं। आदरणीय माताजी ने जिस प्रकार हिन्दुस्तान के छोटे-बड़े गाँवों में जाकर जातीय एकता, नैतिकता एवं अहिंसा का व्यापक प्रचार-प्रसार किया एवं जम्बूद्वीप के निर्माण रचना हेतु कार्य किये वह अत्यन्त सराहनीय एवं प्रशंसनीय है। मेरी ईश्वर से हार्दिक प्रार्थना है कि पूज्य माताजी के सम्मान में अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन पूर्णरूपेण सफल हो। [गोकलचन्द मितल] Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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