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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [५०५ जैनागम, समाज एवं कतिपय इतिह सज्ञ विद्वानों को छोड़कर अभी तक भी सामान्य लोक समुदाय अंतिम तीर्थंकर भ. महावीर को ही जैन धर्म का संस्थापक मानता है। यह विडम्बना तर और बढ़ जाती है, जब पाठ्य-पुस्तकों में भी ऐसा लिखा जाता है। इससे जैन धर्म की प्राचीनता पर संदेह होने लगता है। इस परिप्रेक्ष्य में आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की लघु पुस्तिका "चौबीस तीर्थंकर" अपरिहार्य कृति है, जो उक्त भ्रामकों का निराकरण करती है। भारतीय अध्यात्म-परंपरा में चौबीस तीर्थंकर प्रत्येक मुमुक्षु के लिए परम आराध्य हैं। इनकी पावन कथा के पठन, श्रवण एवं मनन से मानव-मात्र का परिष्कार होता है। महापुराण आदि ग्रंथों में चौबीस तीर्थंकरों का विशद वर्णन उपलब्ध होता है, परन्तु आज के इस कम्प्यूटर युग में सर्वत्र ही लघु मार्ग (Short Cut) की अपेक्षा से जन-सामान्य के अवबोध की दृष्टि से जिज्ञासुओं की पूर्ति हेतु आर्यिका श्री ने उक्त पुस्तक के निर्माण से एक महती आवश्यकता की पूर्ति की है। इस लघु पुस्तिका में पूज्य आर्यिका श्री ने अपने उत्कृष्ट ज्ञानाराधना से प्राप्त नवनीत को इस तरह प्रस्तुत किया है कि सर्व-सामान्य पाठक चौबीसों तीर्थंकरों के पावन चरित्र को पढ़कर आत्म-हित की प्रेरणा प्राप्त करता है। पुस्तक में २४ तीर्थंकरों के अतिरिक्त ग्यारह अंग, चौदह पूर्व, त्रेसठ शलाका पुरुषों के नाम, १४ कुलंकरों एवं वर्तमान चौबीसी का वर्णन भी दिखाया गया है, जो अत्यंत उपयोगी है! बहुभाषाविद् विदुषी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी अपनी अनवरत संयमाराधना, ज्ञानाराधना के साथ साहित्य-साधन में लगी रहती हैं। उनका विशाल परिमाण में सृजित साहित्य-भारतीय वाङ्मय के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में उल्लेख्य है। आपका बहु आयामी व्यक्तित्व श्रावकों एवं श्रमणों दोनों के लिए प्रेरणा पुञ्ज है। उनके महनीय व्यक्तित्व एवं कृतित्व के प्रति हम नतमस्तक हैं, वे वंदनीय हैं। जैन महाभारत समीक्षिका-श्रीमती सुमन जैन, कंचन बाग, इंदौर। मलिक आधिकाराम श्रीamarathe भारत में वैदिक और जैन संस्कृति प्राचीन काल से विद्यमान रही है। इस देश में जन्मे महापुरुषों को दोनों संस्कृतियों में आदरपूर्वक चित्रित किया गया है, जहाँ वेद एवं पुराणों में भगवान ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ Sywwications आदि का चरित अत्यन्त आदर के साथ उल्लेखित किया है, वहीं जैन संस्कृति में ६३ शलाका पुरुषों के रूप जैन महाभारत में मर्यादा पुरुषोत्तम राम एवं योगिराज कृष्ण को आदर सहित चित्रित किया है। पद्मपुराण, पउमचरिउ आदि में राम और कृष्ण के चरित्र की विस्तार से चर्चा की गई है। समीक्ष्य कृति जैन महाभारत कथानक का मूल स्रोत है। महाभारत की कथा जैन परम्परा में वैदिक परंपरा से कुछ भिन्न है। उदाहरण के तौर पर वैदिक परंपरा में द्रौपदी के पाँच पति बताये गये हैं। जबकि जैन परम्परा में यह उचित नहीं माना है। पाँच पति की कल्पना भारतीय संस्कृति के अनुकूल नहीं है और यह मात्र कल्पना ही है। __ हमारे पुराणों में अटूट सामग्री बिखरी पड़ी है, जो यदि नई पीढ़ी के सामने सही ढंग से प्रस्तुत की जाय दिवाब मेव त्रिलोक जोयाबी तो नई पीढ़ी में धर्म और संस्कृति के प्रति निष्ठा, श्रद्धा और नैतिक आस्था जाग्रत हो सकती है। पूज्य आर्यिका traige मेरा 3000 ज्ञानमतीजी ने प्रथमानुयोग के शास्त्रों का गहन अध्ययन कर प्रामाणिकता के साथ सरल और सुबोध शैली में उपन्यास एवं कहानियों के माध्यम से जो अनेक रचनाएं प्रस्तुत की, उसी श्रृंखला की एक कड़ी जैन महाभारत है। इसे रोचक और सहज रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी यह कृति पाठक जगत् के लिए सराहनीय प्रयास है। मैं अत्यन्त विनयपूर्वक यह आशा करती हूँ कि यह कृति जैन जगत् की ही नहीं, मानव मात्र के लिए उपकारक होगी। क्या ही अच्छा हो कि विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कराकर इसका व्यापक और निर्दोष मुद्रण कराया जाये। कुछ चित्रों का संयोजन कृति में किया जाना इसकी रोचकता को और बढ़ाएगा। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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