SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२८] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला [९२ ] आचार से पवित्र होने के लिए वे आचार्यों के गुणों का ध्यान करती हैं। वे पुस्तक, निवास, सहायक, भोज्य, आराधन, पठन, पाठन आदि की सम्यक् बुद्धि को धारण करती हैं तथा शुभ सम्य भावपूर्वक तप को तपती हैं। [ ९३ ] आपके ज्ञान किरण की विशाल ज्योति केवल आपके ही समीप स्थित नहीं रहती है। जिस तरह गंगा की गम्भीर, निर्मल, शान्त एवं स्वच्छ धारा बहती है। उसी तरह वह ज्ञानधारा भरत क्षेत्र के संपूर्ण भाग में प्रवाहित होती है। [९४ ] स्वाध्याय, वाचना, पृच्छनता, आम्नाय, धर्मोपदेश, अनुप्रेक्षा की शुभ भावना में स्वानुभूति से युक्त आत्मा के समत्व ज्ञान में प्रवृत्त निजात्म कर्म के हित को धारण करने में वे प्रवृत्त होती हैं। [९५ ] अज्ञान एवं संसरण के कारण भूत इस संसार में, संसार का जानकार स्वयं व्यक्ति ही है, ऐसी लोक मान्यता है। मोहरूपी अन्धत्व को प्राप्त जनों के लिए आपके भाषण से प्रकाश मिलता है, उसी तरह आपके ज्ञान के प्रकट होने पर संसार के प्रति व्यक्ति की वृत्ति नहीं होती। [९६ ] लोक में कठिन, कष्ट प्रधान, अष्टसहस्त्री जैसे गंभीर जैन दर्शन के संस्कृत भाषा में निबद्ध, नाना समासों से युक्त शास्त्र का हिन्दी में अनुवाद करके जो आपने परोपकार किया है, उसके लिए ज्ञानमती माता धन्य हैं। [९७ ] अन्य त्रिलोकसार आदि विशाल ग्रन्थों को अनुवाद करके बालकों, मनुष्यों के नित्य नियम के बोध के लिए एवं नारियों की शिक्षा हेतु शिक्षा से परिपूर्ण कथा आदि काव्यों की पूजा, विधान, जिनस्तुति और नाटक आदि की रचना करके आपने तीनों लोकों का बड़ा उपकार किया है। [९८] भक्ति के भाव एवं रस से पूर्ण अनेक ग्रन्थ न केवल सरस हिन्दी राष्ट्र भाषा में लिखे, अपितु अंग्रेजी, सरल संस्कृत भाषा में रचनाएं की। ज्ञानमती का समग्र ज्ञान भाव से युक्त सुशोभित होता है। [९९ ] हे ज्ञानमती माता ! आपमें सरस्वती की सौम्यमूर्ति का निवास है। आप सदैव उत्तम शास्त्र एवं आगम रूपी सिन्धु से सुशोभित हैं। आपके द्वारा चंदना सती सदृश चंदन की तरह यशस्वी शिष्याएं बनायी गयी हैं। आप शिष्याओं से शिष्या बनाने में प्रवीण एवं धीर हैं। [१०० ] आप शीलप्रधान गुण से युक्त समत्वधारी हैं। आप मुक्ति के मार्ग पर अग्रसित सम्यक् शीलधारिणी हैं, आपका सम भाव से युक्त यश और आपकी सृजनपूर्वक समत्व शक्ति हम सभी लोगों में वास करे। [१०१ ] अनभिज्ञ, बुद्धिविहीन, फिर भी ज्ञान गुण में लीन यह उदयचन्द्र आर्यिका ज्ञानमती के चरित्र को प्राकृत भाषा में प्रकट करता है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy