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________________ उपदेश ग्रन्थ-रचना Jain Educationa International गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ यह उनका दृढ़ विश्वास आस्था का परिचय बतलाता है; जो जिनवर पर रखता श्रद्धा, सारा संकट मिट जाता है । अब ज्ञानमती माताजी से, उपदेश तुम्हें सुनवाता हूँ; इस दिव्य ज्ञान की गंगा में, तुमको स्नान कराता हूँ ॥ ९३ ॥ हम पर को देते रहे दोष, पर अपनी कमी न जानी है यह है अशांति का खुला गर्त, जिसमें कराहता प्राणी है । है उसका कहीं इलाज नहीं, जो ममता में सुख गिनता है; है दुःख का वहीं निवास "सरस", जिस जगह चाह है, चिंता है ॥ ९४ ॥ जब तक कषाय से कसा हुआ, कितना ही मिले सुभीता है; यदि तीन लोक भर सम्पत हो, तब भी समझो वह रीता है। यह स्वयं आत्मा ज्ञानवान, सम्यक वैभव बलशाली है; ; उसके समक्ष जग सुख नगण्य, छल है, धोखा है, जाली है ॥ ९५ ॥ श्री ज्ञानमती जी माता का, यह बारम्बार इशारा है उनके जीवन के पौरुष का, यह सबसे पहला नारा है । जो लोग बताते ईश्वर ही कर्ता-धर्ता उजयाला है बस इस विचार ने जीवों का, पौरुष पंगु कर डाला है ॥ ९६ ॥ ईश्वर न किसी को सुख देता, वह नहीं दुःखों का हरता है; मानव अपना ही शत्रु मित्र, उत्थान-पतन का कर्त्ता है । यह किसी एक के लिए नहीं, इसकी शक्ति अवनीश्वर है; जो राग-द्वेष को जीत सके, बस वही जीव ही ईश्वर है ॥ ९७ ॥ इसलिए तुम्हें यदि अपने में, ईश्वर का रूप दिखाना है; श्री आदिनाथ से महावीर, तक की कोटि में आना है। तो राग-द्वेष के शोलों पर सम्यक का जल वर्षाओ रे बाना विराग का धारण कर, यह जीवन सफल बनाओ रे ॥ ९८ ॥ जिसने जड़ तन को चेतन के रंग में रंग करके मोड़ा है; जितना जस गायें थोड़ा है। उस महा विरागी माता का अब एक बात माता जी वे कितनी भाषा की ज्ञाता, स्पष्ट तुम्हें समझाता हूँ ॥ ९९ ॥ के बारे में और बताता हूँ; " केवल संस्कृत, न हिन्दी में, वह समझो ज्ञान प्रदाता हैं; मी सुनो मराठी, कन्नड़ की, त्यागिन के साथ कवित्री हैं, भाषा की अच्छी ज्ञाता है। अनुवादक, श्रेष्ठ कथायें हैं; साहित्य समाज देश भर को इनसे काफी आशायें हैं ॥ १०० ॥ , इनके कुछ ग्रन्थों का परिचय, मैं अभी सामने लाता हूँ: अब ज्ञानसिंधु के कुछ मोती, श्रीमान अभी दिखलाता है। ये हैं कितने अनमोल, जिन्हें पढ़कर ही पाठक जानेंगे; फिर भी इनकी प्रतिभा का हम, कुछ परिचय देकर मानेंगे ॥ १०१ ॥ सुनिए जो ज्ञानमती जी का साहित्यिक सृजन अनोखा है; For Personal and Private Use Only [२९९ www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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