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________________ २४४] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला ग्रंथों की रचना की है अतिभारी, जिसको पढ़कर हैं हर्षित नर नारी माता तू ज्ञान की भंडार है तेरे चरणों में नमस्कार है ॥ माता की ... विनती करता हूँ माता आज भी ये दर्शन सदा तेरे मुझको मिलते रहें। दर्शन से होते पाप नाश हैं। तेरे चरणों में नमस्कार है ॥ माता की . . . . युग की माँ है तू पहली बाल सती तेरे चरणों में मिलती मोक्ष मही। तेरे चरणों में ये संसार है, नैया लगा दे मेरी पार है ॥ माता की . . . . तेरे चरणों में आया हूँ माता ____ अपना चाहूँ मैं मुक्ति से नाता । नश्वर ये सारा संसार है, जीवन की नैया करो पार है॥ माता की महिमा . . . . . . . . . . ... . . . . . . . . भजन -श्रीमती त्रिशला जैन शास्त्री, लखनऊ तर्ज-चंदन सा बदन . . . . . . . . निर्मल दर्शन, चारित्रमयी. हे ज्ञानमूर्ति तुमको वंदन- २ सम्पूर्ण कलाओं से पूरित, हे सरस्वती माँ, तुम्हें नमन ।। तेरी गुणगाथा को गाना, सूरज को दीप दिखाना है । फिर भी कुछ पूष्प समर्पण कर, जीवन को सफल बनाना है । जो तेरी शीतल छाया में, रुकता पुलकित होता तन मन । निर्मल दर्शन . है सभी द्वीप में प्रथम द्वीप, जो वर्णित सभी कथाओं में । साकार हुआ है पृथ्वी पर, तेरे अनुपम आख्यानों से ॥ उसका दर्शन वंदन करके, करते लाखों नित पुण्यार्जन । निर्मल दर्शन . है चर्चित नगर हस्तिनापुर, जिसके चहुँ ओर घना जंगल । उस जंगल में है शोभ रहा, पर्वत सुमेरु और भव्य कमल ॥ सब महिमा तेरी है माता. तव चरणों में है अभिवंदन । निर्मल दर्शन . . . . . . . . . . . . . . . . Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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