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________________ २३८] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला यश वैभव फैलाकर जग में, वसुधा को बरदान दिया। हिंसा पाप मिटाकर माँ ने, सबको जीवन-दान दिया । सौम्य छवि है अतुल कीर्ति से, तुमको हर मन ने घेरा । ऐसी माता ज्ञानमती को. सत-सत बार नमन मेरा ॥ तेरी वाणी सुनकर के माँ, मुरझे तरु भी लहराये । मृत जीवों में सचमुच माता, नई आत्मा आ जाये ॥ तेरे ही पद संजीवन में, लगता है मेरा डेरा । ऐसी माता ज्ञानमती को. सत-सत बार नमन मेरा ॥ ममता मोह पतन कर डाली, मन में त्याग समाया है। प्रतिपल चिंतन, अविरल मंथन, सत्यका दीप जलाया है। कोमल देह रहे कांटों पर, उर है खिला सुमन तेरा । ऐसी माता ज्ञानमती को. सत-सत बार नमन मेरा ॥ अभिनन्दन है, शत शत अभिनन्दन ! -प्रेमचन्द जैन, महमूदाबाद माँ ! अब मेरा भी कल्याण करो । निज कर का देकर संबल मेरा भी भवत्राण हरो ॥ माँ ॥ कितने तारे ? नहीं व्योम में उतने तारे, ज्ञान दान देकर भव्यों को कितनों को भव पार उतारे । सत्पथ पर बढ़ चले कदम ऐसी शक्ति दान करो ॥ माँ ॥ तोड़ सकूँ मैं सारे बन्धन, भोग-विलास के सारे आकर्षण । अनुभूति स्वयं की पा जाऊँ ऐसा उर में ज्ञान भरो ॥ माँ ॥ संयममय जीवन बन जावे, सौम्य सरस सुरभित हो जावे । जीत सकूँ दुष्कर कर्मों को ऐसा ही अभिज्ञान भरो ॥ माँ ॥ अब तक भटका मेरा जीवन, करता रहा रौद्र आक्रन्दन । निष्क्रिय जीवन में मेरे शक्ति का नव प्राण भरो ॥ माँ ॥ कर्मजयी बन जाऊँ अविरल, निजात्म में हो जाऊँ निश्चल पराभूत कर सके न कोई ऐसा स्वाभिमान भरो ॥ माँ ॥ अभिनन्दन है, शत शत अभिनन्दन, पदारविन्द में मेरा वन्दन । स्नेहिल आशीर्वच दे दो ऐसी करुणा दान करो ॥ माँ ॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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