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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ [१६३ शब्दाञ्जलि अर्पित करता हूँ - सुशील जैन, मोदीनगर इस जीवन रूपी मधुबन में, मन सुमन भी कुम्हला जाता है। मैं कैसे करूँ पुष्प अर्पित, मेरा भी मन अकुलाता है ॥ इसलिए मैं अपने शब्दों को, पुष्यों के रूप में धरता हूँ। माँ के ममतामय चरणों में, शब्दाञ्जलि अर्पित करता हूँ ॥ पूज्य गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के पावन चरणों में अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए मैं गौरव का अनुभव करता हूँ। सन् १९७४ के वह क्षण भी मैं कभी भूल नहीं सकता, जब माताजी प्रथम बार हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र पर पधारी। उस समय उनके शिष्य ब्र० मोतीचन्दजी जम्बूद्वीप रचना के लिए स्थान देख रहे थे। मेरे पिता श्री बूलचन्दजी जैन मवाना वाले पूरी लगनपूर्वक उनके साथ जमीन देखने में सहयोग प्रदान कर रहे थे। मैं उस समय उनका ड्राइवर होता था; क्योंकि उन दोनों लोगों को जगह दिखाने हेतु गाड़ी मुझे ही चलानी पड़ती थी। उस समय तक तो मैं यह सोच भी नहीं सकता था कि हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप का एक बीज वटवृक्ष का रूप धारण कर लेगा, किन्तु अल्पकाल में यह तीर्थक्षेत्र विश्व की दृष्टि का केन्द्र बन गया और प्रेरणास्रोत पूज्य ज्ञानमती माताजी आज संसार की एकमात्र विभूति बन गईं। यह सब उनकी तपस्या एवं ज्ञान का ही प्रतिफल है, वरना उत्तर भारत का कौन-सा व्यक्ति सोच सकता था कि कभी हस्तिनापुर का यह विस्तृत रूप दुनिया के समक्ष आने वाला है। आज यहाँ के समस्त इतिहास मानो सचेतन हो उठे हैं, यहाँ के घने जंगल में स्वर्ग जैसा सुख नजर आने लगा है। गुरुओं के बारे में अपने बुजुर्गों से न जाने कितनी बातें सुना करता था कि वे जहाँ भी चले जाते हैं वह नगर भी स्वयं तीर्थ बन जाता है। जहाँ जम्बूद्वीप के साथ ज्ञानमतीजी के नाम ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, वहीं भक्ति के क्षेत्र में इन्द्रध्वज आदि विधानों के द्वारा तो वे बच्चे-बच्चे के हृदय में समा गई हैं। सन् १९८० में उनके दिल्ली प्रवास के मध्य मुझे भी श्री पन्नालाल सेठी द्वारा आयोजित इन्द्रध्वज विधान में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उसके बाद सन् १९८९ के दशलक्षणपर्व में मैंने हस्तिनापुर जाकर इन्द्रध्वज विधान किया और जनवरी सन् १९९० में पूज्य माताजी के संघ को मोदीनगर ले जाकर वहाँ इन्द्रध्वज विधान किया। इस प्रकार प्रत्यक्ष चमत्कारों से प्रभावित होता हुआ मैं आज पूज्य ज्ञानमती माताजी का कट्टर भक्त हूँ। मेरा अपना छोटा-सा परिवार है। धर्मपत्नी सुशीला जैन की पूज्या माताजी के प्रति असीम श्रद्धा है। मेरी दोनों गुड़िया स्वप्निल और स्वाति अपनी अल्पकालीन छुट्टियों में भी हस्तिनापुर ही पूज्य माताजी के पास चलने के लिए जिद करती हैं, क्योंकि उनके सानिध्य में जाकर ज्ञान के साथ-साथ माँ का प्यार भी प्राप्त होता है। ___ मैं एवं मेरा परिवार पूज्य माताश्री के चरणों में सविनय प्रणामाञ्जलि समर्पित करते हुए उनके वरदहस्त को सदैव चाहता हूँ। अनमोल शिक्षाओं की प्रदात्री - पुष्पेन्द्र जैन, दिल्ली सन् १९८६ भादों के महीने में प्रथम बार जब मैं अपने मामाजी श्री पलटूमल जैन के साथ इन्द्रध्वज महामंडल विधान में हस्तिनापुर आया था तबसे ही मुझे पूज्य ज्ञानमती माताजी का वरदहस्त एवम् आशीर्वाद सतत प्राप्त हो रहा है। मैं लगभग महीने दो महीने में पूज्य माताजी के दर्शनार्थ हस्तिनापुर जाता रहता हूँ और उनसे मुझे बहुत सारी अनमोल शिक्षाएँ मिलती रहती हैं। मैं देखता हूँ कि माताजी के असीम वात्सल्य और उनके द्वारा प्रदत्त जम्बूद्वीप के दर्शन हेतु हजारों यात्री हस्तिनापुर आते हैं और वहाँ हमेशा मेला-सा लगा रहता है। हस्तिनापुर की काया पलट करने में पूज्य माताजी का जो योगदान है, उसे हस्तिनापुर कभी भी नहीं भूल सकता। जिस क्षेत्र पर आज से १५ वर्ष पूर्व पूरे वर्ष में १० से १५ हजार की जनता आती थी उसी क्षेत्र पर आज वर्ष में कई लाख दर्शनार्थी आते हैं, यह दैवी चमत्कार नहीं तो और क्या है ? मेरी कमजोर लेखनी पूज्य माताजी के गुणों का क्या वर्णन कर सकती है; मैं तो उनके चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए यही भावना भाता हूँ कि हस्तिनापुर के इस क्षेत्र को उनका मंगल सानिध्य चिरकाल तक प्राप्त होता रहे, जिससे उसकी कीर्ति अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित होती रहेगी। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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