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________________ १५८] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला विश्व में अद्वितीय है, जिसको जैन इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा। साथ ही साथ आपकी प्रेरणा से निकली ज्ञान ज्योति ने भारत के कोने-कोने में जैन धर्म को व्यापक ज्योतिर्मय किया है। माताजी भी धन्य है, जो भारतवर्ष की महान् विदुषी है ऐसी पुण्यात्मा युगों-युगों तक जैनधर्म को गौरवान्वित करती रहें, दीर्घायु हों ऐसी हमारी शुभकामनाएँ हैं। माताजी का चिरस्मरणीय उपकार • श्रीचंद जैन, सनावद माताजी के हमारे ऊपर बहुत उपकार हैं, विशेषकर सनावद समाज पर पोरवाड़ समाज का नाम दो रत्नों को आत्मकल्याण में लगाकर उनकी आत्मा तथा पोखाड़ समाज का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखाया चातुर्मास से हमें जो माताजी ने धर्म में और समाज कार्यों में लगाकर हमारा उपकार किया वह चिरस्मरणीय है माताजी के चातुर्मास से हम साधु और श्रावक का महत्व समझ सके माताजी ने मेरे ऊपर जो उपकार किया उसे मैं शब्दों में नहीं लिख सकता । माताजी ने मुझ छोटे से व्यक्ति को पंचकल्याणक में भगवान् के माता-पिता बनने का अवसर प्रदान किया, वह मैं कई भवों में भी प्रकट नहीं कर सकता था। माताजी द्वारा ही मैं धर्मकार्य में अपने आप को लगा सका । | माताजी ज्ञान की भंडार, ज्ञान की जननी हैं। माताजी के कारण तो सनावद समाज एवं गाँव को हिन्दुस्तान का बच्चा-बच्चा पहचानता है। सनावद नाम जैन समाज में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। माताजी अपने आप में एक महान् शक्ति हैं और उन्हीं की शक्ति से हम अपने समाज में अपने आपको शक्तिमान् अनुभव करते हैं। पूज्या माताजी के चरणों में मेरा शत शत वंदन । मैं उनके शतायु होने की कामना करता हूँ। मृदुभाषिणी माताजी नेमीचन्द्र चाँदवाड, झालरापाटन परम पूज्या १०५ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी बड़ी तपस्विनी ज्ञानमयी, सदुपदेशी, कल्याणमयी, परसेवी, मृदुभाषी है आज के भौतिक युग में धर्म से विचलित लोगों के लिए श्री माताजी के उपदेशों का लाभ उनको एवं समाज को मिले। हमारा यह समाज उनके उपदेशों से सुदृढ़, सुसंस्कृत, स्वस्थ, परोपकारी समाज बने और श्री माताजी के अमृत वचनों का लाभ समाज को तथा आने वाले युगों के समाज को लाभान्वित करता रहे, इसी भावना के साथ उनके प्रति मेरी विनयाञ्जलि समर्पित है। साहस और विद्वता की मूर्ति साहस और विद्वत्ता की मूर्ति ज्ञानमती माताजी के उत्साह तथा प्रेरणा से हस्तिनापुर की महना जम्बूद्वीप के रूप में पुनः प्रतिस्थापित हुई। वे जो काम हाथ में लेती हैं वह कभी अधूरा नहीं रहता। उस कार्य में जन-जन की शक्ति का स्वयमेव ही संचार हो जाता है। पूज्या आर्यिका ज्ञानमतीजी ज्ञान का अथाह सागर हैं। यह हम सबका महान् सौभाग्य है कि ऐसी महान् साध्वी का सानिध्य हमें मिला। में पूज्या माताजी के चरणों में बारम्बार नमन करता हूँ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only - राजेन्द्र कुमार जैन, मेरट www.jainelibrary.org.
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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