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________________ १५६] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला माताजी की नमनीय तपाराधना -जयचन्द बाकलीवाल, मद्रास पूज्या गणिनी, सिद्धान्त विशारदा, १०५ आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी हमारे पुण्योदय से प्राप्त पैतृक संपत्ति हैं। जो ज्ञानाराधना, तप-आराधना से जीव को अज्ञान अंधकार से दूर करने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। पूज्या माताजी ने अपनी प्रखर प्रतिभा से, आगम सिद्धान्त, न्याय एवं पुराण आदि सैकड़ों ग्रन्थों को जन साधारण तक पहुँचाकर समाज का महान् उपकार किया है। मासिक पत्रिका "सम्यग्जबान" द्वारा आर्षपरम्परा को यथावत् बनाये रखने का अनूठा प्रयास देखकर मस्तक स्वयं नम्रीभूत हो जाता है । जम्बूद्वीप की रचना वर्तमान भौगोलिकविज्ञों के लिए एक प्रेरणासम्पन्न चेतावनी है। अंत में पूज्या माताजी के चरणों में नतमस्तक होता हुआ कामना करता हूँ कि आप सहस्र आयु होकर आर्षानुगत जिनवाणी की सेवा एवं हम अज्ञानी जीवों को आत्म-साधना का मार्ग प्रशस्त रूप से प्रदान करती रहें। पूज्या माताजी के चरणों में एक बार फिर नमोस्तु । आदर्श नारी का अभिनन्दन - सेठ नाथूलाल जैन, लोहारिया [राज०] परम हर्ष का विषय है दि० जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर श्री १०५ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमतीजी की पावन सेवाओं को देखते हुए ऐतिहासिक पृष्ठांकन हेतु अभिवन्दन-ग्रन्थ का प्रकाशन कर रहा है। यह अभिनन्दन एक महान् साध्वी श्री ज्ञानमती माताजी का ही नहीं, अपितु एक त्यागी-तपस्वी एवं आदर्श नारी का अभिवन्दन है। मैं श्री १०५ श्री आर्यिका ज्ञानमतीजी के पावन चरणों में वन्दामि करते हुए उनकी शत आयु की मंगलकामना करता हूँ। कृतज्ञाञ्जलि -विजयलाल जैन, डालीगंज, लखनऊ परम पूज्या श्री ज्ञानमती माताजी के बारे में जितना लिखा जाये वह थोड़ा है। मेरे और मेरे परिवार में जो भी धार्मिक संस्कार हैं, वह पूज्या माताजी के ही आशीर्वाद का फल है। संस्थान जो पूज्या गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी का अभिवन्दन ग्रन्थ निकल रहा है, इसके लिए हम संस्थान को बधाई देते हैं और माताजी के प्रति हम अपनी विनयाञ्जलि समर्पित करते हैं। आर्यिकाओं में अग्रणी - पोपटलाल कालीदास कोठारी, ईडर [गुज०] पूज्या ज्ञानमती माताजी “यथा नाम तथा गुण" वाली कहावत को चरितार्थ करती हैं। वे अगाध ज्ञान की भण्डार हैं, जोकि उनके द्वारा रचित एवं प्रकाशित विविध साहित्य से स्पष्ट प्रकट हो रहा है। उनकी जम्बूद्वीप निर्माण की योजना ने जैन भूगोल संबंधी तत्त्व ज्ञान को प्रकाश में लाने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, जो आधुनिक भूगोल वेत्ताओं के लिए एक गम्भीर चुनौती है। पूज्या माताजी मात्र कवयित्री या लेखिका ही नहीं, वरन् प्रखर वक्तरी भी हैं। आज समग्र दिगम्बर जैन समाज की आर्यिकाओं में उनका अग्रणीय स्थान है। मैं ऐसी ज्ञानमयी माताजी के चरणों में हार्दिक विनयाञ्जलि समर्पित करता हुआ उनके दीर्घायुष्य की कामना करता हूँ। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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