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________________ गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवन्दन ग्रन्थ माताजी की बेजोड़ वक्तृत्व कला वर्तमान में गृहस्थ जीवन के गुरुओं ने तो केवल अक्षर मात्रा की शिक्षा दी, परन्तु माताजी ने उस शिक्षा को अपनी साधना से सांगोपांग बना दिया । इससे इनका नाम भी "ज्ञानमती" सार्थक सिद्ध है । सर्वत्र ज्ञान का ही चमत्कार है। बिजली, हवाई जहाज, टेलीविजन आदि में व्यवहार ज्ञान का चमत्कार सर्वत्र देखा जाता है। पूज्य माताजी के पास "आगम ज्ञान" का चमत्कार देखा जाता है, इससे सर्वत्र नमस्कार होता है । 'चमत्कार को नमस्कार' यह युक्ति चरितार्थ सिद्ध हो गई। पूज्य माताजी की वक्तृत्व कला भी बेजोड़ है। चारों अनुयोगों के माध्यम से प्रवचन होता है। जिसको सुनकर जनता मुग्ध हो जाती है और एक जादू का काम करता है। [१०७ - पं० अमृतलाल जैन शास्त्री, दमोह जिस नगर में पू० माताजी के अनेक छन्दों से बनाये गये विधान होते हैं उनकी सुन्दर मधुर ध्वनि से सभी जनता प्रभावित हो उठती है। पूज्या माताजी की जय हो, पूर्ण मंडप में जयध्वनि गूंज उठती है। अष्टसहस्री न्यायशास्त्र का अपूर्व ग्रन्थ है, जिसको समझना, पढ़ना कठिन होता था, जिसे छात्र " कष्टसहस्री" कहते थे, परन्तु माताश्री ने इसका सरल अर्थ कर दिया है, जिससे उसका नाम "सहजसहस्त्री" हो गया है। अर्थ का सबकी समझ में आना, इसीलिए इसको सहजसहस्त्री कहा गया है। गणित विषय -तिलोय पण्णति महान् ग्रन्थ है, जिसमें गणित विषय को सरल पद्धति से सरल कर दिया है। उनके नाप आदि की व्यवस्था के मुताबिक श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र हस्तिनापुर महानगरी में जहाँ शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ भगवानों के चार चार कल्याणक मनाये गये हैं। उस महानगरी में जम्बूद्वीप, सुमेरु पर्वत, तालाब, नदियाँ, समुद्र सबका जैसा शास्त्र में वर्णन आया है, उसके मुताबिक एक अनोखी रचना का निर्माण कराकर आपने श्लाघनीय कार्य किया है। Jain Educationa International भारतवर्ष या विश्व में ८ आश्चर्यों की गणना है, परन्तु इस अनोखी रचना से विश्व में एक नए आश्चर्य की गणना अस्तित्व में आयी है। वह रचना अपने में अद्वितीय है, दर्शनीय है, जिससे माताश्री का नाम अपने आप विश्व में "आर्यिकारत्र ज्ञानमती" के नाम से विख्यात होता रहेगा। पू० माताश्री शतायु होकर स्त्रीलिंग छेदकर अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग की भावना से एक अपूर्व पद की प्राप्ति करें और चार घातिया कर्मों का नाशकर "केवलज्ञान ज्योति" प्रकट करें। जिससे आपका यशोगान सर्वत्र फैले। यही हमारी इस शुभ अवसर पर मंगलकामना है। सहृदय वात्सल्य से समन्वित पं० जीवनलाल शास्त्री प्राचार्य श्री स्वाद्वाद सिद्धान्त संस्कृत महाविद्यालय, ललितपुर [उ०प्र० ] जिनमार्ग रुचि सम्पन्न दिव और शिवपथ के अन्वेषण में तत्पर चार अनुयोगों के प्रसार से सम्यग्ज्ञान पथ को प्रकाशित करने वाली, भवभोग तन विषयों से विरक्त / आज्ञापाय विपाक संस्थान विषरूप चारों धर्मध्यानों में अनुरक्त, परमविशुद्धि के साधन-अष्टांग सम्यग्दर्शन गुणों से सुशोभित, संयम भावयुक्त, साधुसज्जनों के प्रति सहृदय वात्सल्य से समन्वित, स्वपुण्य प्रताप एवं क्षयोपशम ज्ञान से विलक्षण ज्ञानमती नाम की सार्थकता धारण करने वाली, सहजस्नेहमयी सौम्य स्वभाव की आभा को विस्तारती, स्त्रीपर्याय में भी जन-जन के मन में सद्धर्म की ओर प्रेरणा करने वाली, धर्मज्ञानमय पवित्र जीवन के सार तत्त्वरूप क्षमता को प्राप्त गणिनी एवं आर्यिका जैसे पूज्य पद में विराजित पूज्य ज्ञानमती माताजी को इस अभिवंदन के पावन अवसर पर मेरी विनयांजलि समर्पित है। इस दुःखम पंचमकाल में पक्षातीत होना तथा पंथविवाद से रहित होना सर्वहितकर सारभूत तत्त्व प्राप्ति के लिए अति दुष्कर कार्य है, इस हेतु माताजी का प्रयास सराहनीय है। For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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