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________________ ७८] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला तो अहिंसा का विस्तार करके अपना संसार घटाता है। शाश्वत सत्यता के बारे में मात्र ज्ञानी ही विचार कर सकते हैं, मनन कर सकते हैं और तदनुरूप आचरण कर सकते हैं, किंतु हस्तिनापुर के इस मॉडल द्वारा यदि संभावित हो सके तो विभिन्न भाषाओं द्वारा "गाइड-व्यवस्था" करके प्रत्येक दर्शनार्थी को जैन दर्शन का लाभ उसके आत्मकल्याण हेतु दिया जा सकता है। ८४ लाख योनियों में से भटक-भटककर घूमने के बाद भूले-भटके पाए हुए इस मनुष्य जन्म को मात्र सांसारिक भूलभुलैया में खोने के बजाय "कल्याण" मार्ग-दर्शन देकर जगाया जा सकता है। ताकि पौरुषार्थिक क्षमता से इच्छुक जीव त्रिलोकी सत्ता के शिखर सिद्धलोक तक पहुँचने का उपक्रम कर सके। यह अनुपम देन आर्यिकाजी की ही है। पूज्या माताजी की धवल कीर्ति - पं० नाथूलाल जैन शास्त्री, प्रतिष्ठाचार्य, इन्दौर पूज्य आर्यिकारत्न गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी वर्तमान में श्रमण-संस्कृति के आदर्श रत्नत्रय मार्ग को महिला वर्ग में पुनरुज्जीवित करने की उत्कृष्ट भूमिका निभा रही हैं। आपने प्राचीन तीर्थभूमि हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की रचना में अपनी प्रतिभा का जो सदुपयोग कर जैनधर्म के करणानुयोग को "मूर्तरूप दिया, वह सुदीर्घकाल तक आपकी धवलकीर्ति को प्रसारित करता रहेगा। अष्टसहस्री सदृश जैन न्याय के सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ का प्रथम हिंदी अनुवाद लिखकर उसे प्रकाशित करने का श्रेय आपने प्राप्त किया है। अनेक अति आवश्यक मंडल विधान पूजा ग्रंथों को विविध सुन्दर पद्यों में रचकर आपने एक समाज में बड़ी कमी को पूरा किया है। साथ ही अनेक पठनीय ग्रन्थों की रचना भी आपने की है। पूज्या माताजी ने आर्यिका पद से अपनी आत्माराधना करते हुए पूर्वावस्था की अपनी माताजी, भ्राता, बहन और अन्य परिवार के व्यक्तियों को भी अपने त्यागमय जीवन का सहयोगी बनाकर एक प्रेरणा बनाकर एक प्रेरणाप्रद अपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया है। जंबूद्वीप के त्रिलोक शोध संस्थान के अन्तर्गत विद्यालय, परीक्षालय, मासिक पत्रिका प्रकाशन आदि विविध रचनात्मक प्रवृत्तियाँ आपके सानिध्य एवं मार्गदर्शन में चल रही हैं, जिनका संचालन पूज्य क्षुल्लकजी एवं बाल ब्र० रवीन्द्र कुमारजी शास्त्री कर रहे हैं। श्री १०५ आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी के अभिवंदन के इस पुण्य अवसर पर मेरी सविनय वन्दना और मंगलकामना। गुण गरिमा की प्रतिमूर्ति - डॉ० शरदचन्द्र शास्त्री, स्पोर्ट आफीसर अलीराजपुर [झाबुआ] म०प्र० जो सत्शास्त्रों की आराधना-उपासना में अवगाहन कर साक्षात् सरस्वती की भाँटि जितेन्द्रिय होकर एकाग्रता से निरन्तर ध्यान, मनन, चिन्तन में लीन रहती हैं। जिनकी भावना लोक-कल्याण की दृष्टि से सिद्धांत ग्रन्थों को सरल सुबोध करन में रहता है। बहमुखी प्रतिभासम्पन्न माताजी में संवर और निर्जरा के साक्षात् दर्शन होते हैं। जिनकी गुण गरिमा अनिर्वचनीय है, उन गुण गरिमासम्पन्न आर्यिकारत्न पूज्य ज्ञानमत गाताजी के पावन चरणों में चिरायु होने की मंगलकामना के साथ अनन्त बार सादर नमन् है। Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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