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________________ खण्ड इतिहास-प्रेमी गुरुवर्य श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ३९ आपश्री के सदुपदेश से लक्षों रुपये व्यय हुये हैं और हो रहे हैं । ये सर्व ही तीर्थ अतिप्राचीन हैं । इन पर आपश्री द्वारा स्वतंत्र पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं तथा 'गुरुचरित' में भी पूरा २ वर्णन आया है । आपश्री लक्ष्मणीतीर्थोद्धारक कहे क्षाते हैं। ___ मण्डल, विद्यालय-आपश्री के सदुपदेश से कई ग्रामों में समाजसुधारक मण्डल स्थापित हुये हैं और आज तक उनमें से अधिक विद्यमान हैं तथा अच्छा कार्य करते रहे है । सियाणा, तीखी, बागरा, आहोर, हरजी, जावरा, राजगढ, राणापुर आदि में समय समय पर आपके सदुपदेशों से विद्यालय स्थापित हुये । सियाणा, जावरा और राणापुर में अभी भी चल रहे हैं । अन्यत्र जो अंत को प्राप्त हुये हैं वे स्थानीय समितियों के सभ्यों में तत्परता की न्यूनता और अनुभवहीनता के कारण । बागरा का विद्यालय अगर अब तक रह जाता तो वह निस्संदेह देश की एक महान् शिक्षण-संस्था होती । फिर भी नव वर्षों के जीवन में उसने जो विद्यार्थी निकाले वे उसके चरित्रवान् कलेवर और उसकी प्रतिभा और भावनाओं का आभास देते रहेंगे। साहित्यसेवा-आपद्वारा रचित, सम्पादित एवं संकलित लगभग ६० से उपर छोटी-बड़ी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । धर्म, नीति, समाज, इतिहास, पुरातत्त्व की दृष्टियों से इनमे से अधिक उपादेय एवं संग्रहणीय हैं । ईसी लेख के अंत में उपरोक्त पुस्तकों की सूची दी जा रही है; अतः यहां उन सर्व का नामोल्लेख करना आवश्यक प्रतीत नहीं होता । फिर भी अतिप्रसिद्ध एवं उपयोगी ग्रंथों की ओर संकेत कुछ कर देना ठीक ही है: तीन स्तुति की प्राचीनता, गौतमपृच्छा, सत्यबोध-भास्कर, गुणानुरागकुलक, जैनर्षिपट्टनिर्णय, श्री भाषणसुधा, श्री यतीन्द्र-प्रवचन भाग १-४, समाधान-प्रदीप, सूक्तिरसलता, प्रकरण चतुष्टय आदि । विहार-यात्राविषयक कुछ ग्रन्थों के नाम पूर्व के पृष्ठों में दिये जा चुके हैं। आपश्री के उपदेश से इस लेख के लेखक द्वारा रचित 'जैन-जगती' और उसका समर्पण रूप में स्वीकार्य आपमें रही हुई समाज-सुधार की उदात्त भावनाओं का परिचय देती है । आप में ही वह साहस रहा है कि वर्तमान, भूत, भविष्यत् का सचोट वर्णन देने वाली इस कविता-पुस्तक को जो फैले हुये आडम्बर एवं पाखंड को नेश्तनाबूद करने के लिये बम्ब का गोला कहीं गई है, आप से समर्पण-स्वीकार्य प्राप्त हो सका है। नव वर्षों के अनवरत श्रम से लिखा जा कर 'प्राग्वाट इतिहास' भी आपश्री के एक मात्र उपदेश, उत्साह, अवलंब से प्रसिद्ध हुआ है। इस ग्रन्थों को ज्यों-ज्यों इतिहास-प्रेमी एवं इतिहासज्ञ अपनावेगे वे आपश्री के हृदय में रही इतिहास-प्रियता को समझेगे । मैं ने लिखा है, अतः मैं इस पर अधिक क्या लिखू ? अभी हाल में जो 'श्रीमद् राजेन्द्रसूरि-स्मारक ग्रन्थ' राजगढ (धार-मालवा) में अर्ध शताब्दी-उत्सव के शुभावसार पर प्रकाशित हुआ है वह आपकी उत्कट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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