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________________ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ जीवन "अर्ध-शताब्दी-महोत्सव आगामी चैत्र सुदि १३-१४-१५ और वैशाख वदि १ को मनाने का निश्चित किया गया। उत्सव के सभी कार्य सम्पन्न करने के लिये एक सर्वाधिकार समिति १०१ आदमियों की बनाई गई । इसके अन्तर्गत सभी समितियों का निर्माण किया गया । समिति के संचालन के हेतु सर्व सम्मति से अध्यक्ष-थराद निवासी शेठ गगल भाई हालचंद संघवी, उपाध्यक्ष-रतलाम निवासी डाक्टर प्रेमसिंहजी राठोड़, स्वागताध्यक्ष - इन्दौर निवासी पण्डित जुहार मलजी जैन शास्त्री न्याय-काव्यतीर्थ, कोषाध्यक्ष - रतलाम निवासी शेठ श्री कन्हैयालालजी काश्यप एवं राजगढ़ निवासी री मलजी आम्बोर. मंत्री-राजगढ़ निवासी मांगीलाल जी छाणेड को बनाया गया । दिनाङ्क २१ की संध्या को अध्यक्ष महोदयने सम्मेलन की समाप्ति की घोषणा की। इस प्रकार सम्मेलन की व्यवस्था प्रशंसनीय ढंग पर रची गई। इस प्रकार चातुर्मास में अनेक धर्म-कार्य होते रहे व महदानन्द के साथ चातुर्मास पूर्ण हुआ। चातुर्मास के बाद "गुरु सप्तमी" उत्सव पूर्ण उत्साह के साथ मनाई गई । सुबह में प्रभात फेरी निकाली गई । मन्दिरों के दर्शन करते हुए सारे नगर में फिर कर जनसमूह गुरुमन्दिर में गुरुदेव के दर्शन कर पुनः राजेन्द्र भवन में आया । जुलुस यहां पर सभा के रूप में परिणित हुआ। सभा को गुरुदेव श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने सम्बोधित करते हुए कहा "जिस उत्साह व प्रेम से श्री संघ ने यह जयन्ती मनाई है वही उत्साह प्रेम सदेव ही बना रहना चाहिये । अपन सब मिलकर हर वर्ष महान् आत्माओं की जयन्तियां मनाते हैं; किन्तु उनके नाम के अनुरूप कोई न कोई स्थाई चीज बनाना चाहिये जिससे वह अपने को हमेशा उनकी याद दिलाती रहे"। आप श्री की वृद्धावस्था होते हुए भी आपने संक्षिप्त व सारगर्भित भाषण दिया । अन्त में मुनिराज विद्याविजय जी ने श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए "अर्धशताब्दी" की सारी रूपरेखा पर प्रकाश डाला । जयध्वनि के साथ सभा विसर्जित हुई । पौष सुदि १० को सुबह नव बजे खाचरौद से आप श्री ने मुनि-मण्डलसह पिपलौदा की ओर विहार किया। रास्ते में भेसोला, पारडिया, सेमलिया, उबरवाड़ा आदि गांवों में स्थिरता करते हुये आप पिपलौदा पधारे । यह वही पिपलौदा है जहां के निवासियों को आपने अपने ओजस्वी उपदेश से समाज में मिलाये और खान-पान आदि चालू करवाया। आपश्री का यहां की जनता ने बहुत ही अच्छा स्वागत किया । यहां आपश्री की तत्वावधानता में वृहदशान्ति स्नात्रपूजा पढाने का माघ वदि ५ को आयोजन किया गया था । माघ वदि ५ के रोज बहुत ही हर्षोल्लास के साथ पूजा पढाई गई । आठों ही रोज विविध पूजाओं का आयोजन किया गया था । बाहर से भी ४ हजार की भावुक मानवमेदिनी उपस्थित हुई थी। यहां से आप श्री ने रतलाम की ओर विहार किया । मार्ग में हथनारा, नामली, सेजावता आदि गांवों में धर्मोपदेश देते हुए आप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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