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________________ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ विविध भिणाय नगर समूल नष्ट हो जाने पर अथवा अत्यल्प होजाने पर बना है अथवा छोटे २ उद्भूत हुये गामों के निवासियों ने वर्षा के पानी को रोक देने के लिए उन पत्थरों की एक पाल बना दी है। क्योंकि तालाब का निर्माण व्यवस्थित ढंग से हुआ हो ऐसा वहां कोई संकेत उपलब्ध नहीं है । २८२ ये सर्व भिणाय - खण्डहर बनास नदी के दक्षिणतट पर आगये हैं । नदी कुछ ही फर्लांग के अन्तर पर है । नदी का सामीप्य, पर्वतों का परस्पर गुंथन एवं तीर्थ की उन्नत श्रृंग पर अवस्थिति एक अत्यन्त ही रमणीय दृश्य उत्पन्न करती है । तीर्थ के कारण यह भाग आज भी आवागमन का स्थान बना हुआ । बाव देखने के लिये भी वर्षो में कोई पुरातत्त्वप्रेमी चला जाता होगा । गौपालबाल तो इस बाब पर प्रतिदिन बैठते, विश्राम लेते हैं पुरातत्त्व विभाग इस ओर अगर ध्यान दें तो खोद - कार्य प्रारंभ करने पर मेवाड़ - राज्य से भी प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विषयक बातों का पता लग सकता है । नगी काकी का मन्दिर - कादीसाणा के लालजी गोखरू द्वारा विनिर्मित पर्वत की सीढ़ियों के ठीक सामने से कुछ बायी ओर हट कर एक लघु पहाड़ी है। उस पर यह मन्दिर खण्डित अवस्था में विद्यमान है । उसमें एक जिनेश्वर प्रतिमा भी है और वह भी खण्डित ही है । प्रतिमा श्याम पाषाण की एवं कोई लगभग दो फुट से ऊंची है। उस पर लेख देखने में नहीं आया । सिंहद्वार बाव से ऊपर और पर्वत की जड़ में लेखक ने कोई ७ वर्ष पूर्व देखा था जैसा परिकोष्ठों में प्रायः हुआ करते एक विशाल एवं उन्नत द्वार है। वह मेहराब में खण्डित था । एक ओर का स्तंभ गिर चुका था और दूसरी भूजा अर्धगिरी हुई थी। यह द्वार या तो दुर्ग से आनेवाले राजमार्ग का नगर में का प्रवेशद्वार था । जो कुछ हो; परन्तु द्वार की विशा ता में एवं उसकी दीर्घकाय भित्तियों में और स्थानस्थिति में नगर की लुप्त समृद्धता का एक जीवन्त संकेत था । खुलता द्वार था या नगर कुछ द्वार, नगर क्यों उजड़ हुआ ? इस पर निश्चित रूप से प्रमाणों के अभाव भी नहीं कहा जा सकता। यह इतना भी जो कुछ लिखा गया है वह लेखक का जन्मप्रान्त होने से, वहां पुनः २ गमनागमन रहने से, बचे हुए खण्डहरों पर, बाव, "चलेश्वर तीर्थ की जैसी-तैसी विद्यमान स्थिति पर एवं स्थल की प्रकृति अनुमान लगा कर लिखा गया है । प्रमाणों के मिलने पर जो निश्चित और होगा वह प्रामाणिक होगा । पुरातत्त्व एवं इतिहासप्रेमियों की यह दृष्टि में आवे - मात्र यही उद्देश्य रख कर यह लेख दिया गया है । फिर भी इतना अनुमान लगाकर कहा जा सकता है कि कभी बनास नदी का भयंकर प्रकोप उठा हो और नगर उजड़ गया हो । नदी वहां से थोडे अन्तर पर ही बहती है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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