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________________ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ विविध के चित्र सहित बुलेटिन ऑफ दी प्रिन्स ऑफ वेल्स म्युझिअम, बम्बई, वा. १, अङ्क १ # A female chaurie - bearer from Akota and the school of Ancient west लेख में मैंने दी थी । अभी ललितकला अकोडॉमी का वार्षिक, "ललितकला" नामक कलाविषयक सामयिक में Bronze Hoard From Vasantgadh, पृ० ५४-६५ में वसन्तगढ़ की धातुप्रतिमाओं की चित्रों सहित चर्चा इस लेखक ने की है। यहां उसका सार - भाग दिया जाता है । वसन्तगढ़ की इन धातुप्रतिमाओं में सबसे ज्यादा महत्त्व की दो प्रतिमायें हैं। दोनों बड़े आकर्षक काउसिग्गया हैं। धातु के बड़े पीठ पर विकसित द्विगुणित (double) विश्व-पद्म पर एक - एक जिनकायोत्सर्गमुद्रामें ध्यान में खड़े हैं । दोनों शिल्प एक ही शिल्पी ने बनाये हैं। इनमें से आकृति २ वाली प्रतिमा श्री भादिनाथ या ऋषभदेव की है जो स्कन्ध पर फैले हुए केशान्त - hair locks-से सूचित होती है। ऋषभदेवजी ने चतुर्मुष्टिलोच किया था और शिर के पिछले भाग के केश जिनकी लटें खंधों को शोभा दे रही थीं उनका इन्द्र की विज्ञप्ति से ऋषभदेवजीने लोच करना छोड़ दिया था। यह प्रतिमा करीब ४२ इंच ऊँची है और पीठ (pedestal) १०x१४४ १०.५ इंच का है। दूसरी प्रतिमा [आकृति १] जो इसी शैली की बनी हुई, एक ही शिल्पी की बनाई हुई है, कौन से तीर्थंकर की है वह निश्चित नहीं हो सकता । यह मूर्ति करीब ४० इंच ऊँची है । पीठ पर न कोई लांछन अङ्कित किया गया और न कोई अन्य साधन है जिससे हम इस प्रतिमा की पहिचान कर सकें । इसी प्रतिमा के पीठ पर एक लेख है [आकृति० १ अ] जो स्व. महामहोपाध्याय श्री. गौरीशंकर ओझाजी ने पढ़ा था और मु. श्री कल्याविजयजीने अपने लेख में प्रसिद्ध किया था । यह इस तरह है नीरागत्वादिभावेन सर्वज्ञत्वविभावकं ।। ज्ञात्वा भगवतां रूपं जिनानामेव पावनं ॥ द्रो (णो ? णे) वक (? यक ?) यशोदेव......। ......रिदं क्षेत्र जैनं कारितमुत्तमं । भवशतपरंपराजितगुरुकर्मत ...... अर्जा...... ...... बरदर्शनाथ शुद्धसानलाभाय ॥ संवत् ७४४ साक्षात्पितामहेनेव सर्वरूपविधायिना । शिल्पिमा शिवनागेन कृतमेतज्जिनद्वयम् ॥ इस लेख से स्पष्ट है कि दोनों काउसग्गियाप्रतिमायें ब्रह्मा जैसे सर्वरूपों के विधाता, शिल्पी शिवनाग ने सं० ७४४ (= ई० स० ६८७) में बनाई थीं। इन दोनों शिल्प का बड़ा महत्व है । ईसा की सातवीं सदी के अन्त भाग में Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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