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________________ १५० श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ विविध वृत्ति के रचयिता [सं. ११२२-२५] नमिसाधु इसी गच्छ में हुए हैं । इस गच्छ के १२ वीं से १४ वीं शताब्दी तक के कुछ अभिलेख प्रकाशित हैं । पट्टावलि समुचय भा. २. २२५ देखें. रामसेण के सं. १०८४ के लेखानुसार इस गच्छ का आदि पुरुष वटेश्वराचार्य हैं । अतः मुनि कल्याणविजयजी ने इसकी उत्पत्ति ७ वीं शती मानी है। देवाचार्यगच्छ-नाम से स्पष्ट है कि देवसूरि से इसकी प्रसिद्धि हुई । संभवतः ये देवाचार्य सं. ११४४ के लेखवाले हों (जि. ले. ३८२) जिनविजयजी के प्रा. जैन ले. सं. ले. ४२२, १२४६ के लेख में इसका उल्लेख है व सं. १३८१ का लेख व प्रशस्ति में "देवसूरि गच्छ” नाम आता है। देवसूरिगच्छ-तपागच्छ के विजयदेवसूरि से शाखा चली । वह देवसूरिगच्छ के नाम से भी प्रसिद्ध हुई। देवानंदगच्छ (देवानंदित)-सं. ११९४ व १२०१ की ग्रंथ-लेखन प्रशस्ति में इसका नामः आता है । नाम से देवानंदसूरि से इसकी प्रसिद्ध हुई स्पष्ट है । इस गन्छ के महेश्वरसूरि शि. रचित चंपकसेनरास (सं. १६३०) उपलब्ध है । उनसे करीब ५०० वर्ष तक यह परम्परा चलती रही सिद्ध है। धर्मघोषगच्छ-१२ वीं शताब्दी में धर्मघोषसूरि से इस गच्छ का नामकरण हुआ । नागौर के महात्मा के पास इस गच्छ की परम्परा की विस्तृत नामावलि है जिससे इस गच्छ की १. उछित्रवाल २. मंडोवरा ३. बुढ़ावाल ४. बागौरियादि शाखाओं की आचार्य परम्परा की नामावलि प्राप्त होती है । हमारे संग्रह में उसकी संक्षिप्त नकल है । धर्मघोषसूरि का जीवन "राजगच्छ पट्टावली" व धर्मघोषसूरि स्तुतिद्वय से प्राप्त होता है । सुराणा गोत्र से इसका विशेष सम्बन्ध है । ये उस गोत्र के प्रति बोधक थे। नड़ीगच्छ-श्री अर्बुद प्राचीन जैन लेख संग्रह के लेखांक ५८१ में (सं. १४२३) नड़ीगच्छ नाम आता है। इसे जयंतविजयजी ने गुजरात के नडीआद से इसका पूरा नाम नडीआदगच्छ होने की संभावना की है। नाइल (नायल):- संभव है नाइल कुल से इसका संबंध हो। सं. १३०० का लेख प्राप्त है। नागेन्द्र गच्छ :--संभवतः नागेंद्र कुल ही पीछे से नागेंद्र गच्छ के नाम से प्रसिध्द हुआ है। ९ वीं सदी से १६ वीं तक के आचार्यों की नामावलि मुनि जिनविजयजी संपादित प्राचीन लेख संग्रह में प्रकाशित है । अणहिल्ल पाटण के स्थापक बनराज चावडा के गुरु शीलगुणसूरि इसी गच्छ के थे। उनके शिष्य देवचन्द्रसूरि की मूर्ति पाटण में अब भी विद्यमान है। जैन शासन-प्रभावक, अद्वितीय कला के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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