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________________ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ 6 " विरचित ' भरतेश्वर बाहुबली रास', धर्मविरचित 'स्थूलीभद्ररास', जम्बूस्वामिचरित', १४वीं शताब्दी के समरारास, 'कच्छूली रास, 'जिन पद्मसूरि पट्टाभिषेकरास', घेल्ह रचित सं. १३७१ का ' चउबीसगीत ' ( दिगं०) । पद्मसमुधर और जिनपद्म सूरि विरचित ' नेमिनाथफागु' तथा १५ वीं शताब्दी में रचे गये अनेक ऐतिहासिक रास, फागु, गीतिकाव्य, खंडकाव्य तथा प्रबंधकाव्य तथा - शालिभद्रसूरि विरंचित 'पांचपाण्डवरास', मंडलिक रचित 'पेथडरास', हीरानंद सूरि रचित ' कलिकाल रास 'विद्याविलास पवार्डो', जयशेखर सूरिकृत ' त्रिभुवन दीपक प्रबंध', विजयभद्ररचित ' हंसराज-वच्छराज-चउपई', तथा शालिसूरि विरचित 'विराटपर्व', तथा दयासागर रचित ' धर्मदत्त चरित' ' ( दिगं०) तथा सधार रचित 'प्रद्युम्न चरित ' ( दिगं. ) ' आदि अनेक उत्कृष्ट कोटि की रचनाएं उपलब्ध हैं, जिनकी साहित्यिकता पर कोई भी प्रश्नचिह्न नहीं लगा सकता, जो साहित्य की अपूर्व निधि हैं । तथा जिनका पर्याप्त अध्ययन और विश्लेषण अनेक संदिग्ध तथ्यों, भ्रांत धारणाओं और त्रुटिपूर्ण स्थापनाओं का निराकरण करने में सक्षम है। इसके अतिरिक्त वीरगाथाकाल में, वीरगाथात्मक कही जाने वाली लगभग सभी रचनाओं की अप्रामाणिकता भी सिद्ध हो चुकी है ।" वस्तुतः उक्त सभी रचनाओं की प्राप्ति से पूर्व वीरगाथा काल सिर्फ वीरगाथाकाल ही बना रहा और पीछे वीरगाथाओं के साथ इस युग की अन्य प्राप्त कृतियों का सादृश्य नहीं होने से यह काल उल्टा " अंधकार काल ११५ कहा जाने लगा । अस्तु १०८ < " इस अंधकार में प्रकाश किरणों से आदिकाल को सुषमा प्रदान करने वाली अनेक हिन्दी जैन रचनाएं हैं। इन उपर्युक्त भंडारों में लगभग ५०० से भी अधिक हिन्दी जैन रचनाएं उपलब्ध हो चुकी हैं, जो निश्चित रूपसे हिन्दी साहित्य के आदिकाल की सम्पत्ति हैं । इन श्वेतांबर और दिगम्बर विद्वानों ने इन कृतियों के माध्यम से अनेक विषयों पर अनेक रूपों में प्रकाश डाला है । ये सब विषय मात्र धार्मिक ही नहीं, लोकोपकारक भी हैं । साहित्यिक रचनाओं के अतिरिक्त इस आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य में व्याकरण, छंद, अलंकार, वैद्यक, गणित, ज्योतिष, नीति, ऐतिहासिक, सुभाषित, बुद्धिवर्धक, विनोदात्मकं, कुव्यसननिवारक, शिक्षाप्रद, औपदेशिक, ऋतुकोव्य* Jain Educationa International विविध १. वही, पृ. ६२४, २. जैन गुर्जर कवियो - श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई, पृ. ४३०. 66 ३. देखिए राजस्थान के जैन शास्त्र भन्डारों की ग्रन्थ-सची, तृतीय भाग - प्रकाशक बुधिचन्द गंगवाल पृ. ५,१९ तथा हिन्दी अनुशीलन वर्ष ९, अंक १-४ में श्री भगरचन्द नाहटा का " सं. १४११ में रचित प्रद्युम्न चरित्रका कर्ता ” लेख । ४. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ४७ अंक ३-४ में श्री नाहटाजी द्वारा लिखित " वीरगाथा काल की रचनाओं पर विचार, लेख ५. देखिए - हिन्दी प्रेमाख्यानक काव्य ग्रन्थ : श्री. राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ पृ. ७०७ - १०. *. श्री पृथ्वीनाथ कुलश्रेष्ठ - आरंभिक अंश, For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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